Book Title: Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 330
________________ ... 2. कापरड़ा पार्श्वनाथ - जोधपुर से बिलाड़ा-अजमेर रोड पर यह तीर्थ है। प्राचीन उल्लेखों में इसका नाम कर्पटहेडक, कापड़हेड़ा मिलता है। जैतारण निवासी सेठ भानाजी भंडारी ने भूमि से 99 फीट ऊँचा चार मंजिला यह विशालकाय शिखरबद्ध मंदिर बनवाया था। इस मंदिर की उन्नतता और विशालता की तुलना कुमारपाल भूपति निर्मापित तारांगा के मंदिर से की जा सकती है। यह मंदिर चतुर्मुख है और मूलनायक स्वयम्भू पार्श्वनाथ हैं। मूलनायक की मूर्ति जिनचन्द्रसूरि ने सं० 1674 पौष बदी 10 को भूमि से प्राप्त की थी। इसकी प्रतिष्ठा वि० सं० 1678, वैशाख सुदि पूर्णिमा को खरतरगच्छ की आद्यपक्षीय शाखा के जिनदेवसूरि के पट्टधर पंचायण भट्टारक जिनचन्द्रसूरि ने करवाई थी। मूलनायक की चारों मूर्तियाँ परिकरयुक्त हैं। .. 3. चंवलेश्वर पार्श्वनाथ - जहाजपुर तहसील में पारोली से 6 कि०मी० की दूरी पर वर्तमान में प्रसिद्ध चंवलेश्वर पार्श्वनाथ का मंदिर है। अधुना श्वेताम्बर-दिगम्बर के विवाद में उलझा हुआ है। __पं० कल्याणसागर रचित पार्श्वनाथ चैत्य परिपाटी, में मेघविजयोपाध्याय कृत पार्श्वनाथ नाममाला में और जिनहर्षगणि कृत पार्श्वनाथ 108 नाम स्तवन में इस तीर्थ का उल्लेख प्राप्त है। 4. चित्तौड़ सोमचिन्तामणि पार्श्वनाथ - राजगच्छीय हीरकलश द्वारा १५वीं शती में रचित मेदपाटदेश तीर्थमाला स्तव पद्य 16 के अनुसार यहाँ श्री सोमचिन्तामणि पार्श्वनाथ का तीर्थ स्वरूप विशाल मंदिर विद्यमान था, किन्तु आज नामोनिशान भी नहीं है। - उत्खनन में प्राप्त कमलदल चित्र काव्य मय शिलापट्ट के अनुसार अनुमानतः 1162 में जिनवल्लभगणि (जिनवल्लभसूरि) ने पार्श्वनाथविधि चैत्य की प्रतिष्ठा की थी। 5. जीरावला पार्श्वनाथ - खराड़ी से आबू-देलवाड़ा के मार्ग पर 30 कि०मी० और अणादरा -- गाँव से 13-14 कि०मी० की दूरी पर गाँव है। इसका प्राचीन नाम जीरिकापल्ली, जीरापल्ली, जीरावल्ली प्राप्त होता है। उपदेश सप्तति के अनुसार 1109 एवं वीरवंशावली के अनुसार 1191 में श्रेष्ठि धांधल ने देवीत्री पर्वत की गुफा से प्राप्त प्रतिमा की इस गाँव में नवीन मंदिर बनवाकर स्थापना की थी और प्रतिष्ठा अजितदेवसूरि ने की थी। यह तीर्थ जीरावला पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1368 में यह प्रतिमा खंडित कर दी गई। विलेपन करने पर भी नवअंग (भाग) स्पष्ट दिखाई देते थे। खंडित मूर्ति मुख्य स्थान में शोभा नहीं देती, अत: परवर्ती आचार्यों ने मुख्य स्थान पर नेमिनाथ की मूर्ति स्थापित कर दी और इस मूर्ति को दायीं ओर विराजमान कर दिया। . उपदेश तरंगिणी (पृ० 18) के अनुसार संघपति पेथड़ शाह और झांझण शाह ने यहाँ एक विशाल मंदिर बनवाया था और महेश्वर कवि रचित काव्य मनोहर (सर्ग 7 श्लो० 32) के अनुसार सोनगिरा श्रीमालवंशीय श्रेष्टि झांझक्ण के पुत्र संघपति आल्हराज ने भी इस महातीर्थ पर उन्नत तोरण युक्त विशाल मंदिर बनवाया था, किन्तु आज इनका कोई अता-पता नहीं है। इस महातीर्थ की प्रसिद्धि इतनी अधिक हुई कि आज भी प्रतिष्ठा के समय भगवान की गद्दी पर विराजमान करने के पूर्व गद्दी पर जीरावला पार्श्वनाथ का मन्त्र लिखा जाता है। देलवाड़ा के सं० 1491 के लेख के प्रारम्भ में "नमो जीरावलाय' लिखा है, जो इसकी प्रसिद्ध का सूचक है। जीरावला नाम इतना अधिक विख्यात हुआ कि जीरावला पार्श्वनाथ के नाम से अनेकों स्थानों पर मंदिर निर्माण हुए, जिनमें मुख्य-मुख्य हैं:- घाणेराव, नाडलाई, नंदोल, बतोल, सिरोही, गिरनार, घाटकोपर (बम्बई) आदि। लेख संग्रह 319

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