Book Title: Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 329
________________ इसी विविध तीर्थकल्प के अन्तर्गत 'अहिच्छत्रानगरीकल्प' और 'कलिकुण्ड कुर्कुटेश्वरकल्प' में . लिखा है कि प्रभु पार्श्वनाथ दीक्षा ग्रहण कर छद्मस्तावस्थ में विचरण कर रहे थे, तभी ये दोनों तीर्थ क्षेत्र स्थापित हो गए थे। अर्थात् उनकी विद्यमानता में ही दोनों स्थल तीर्थ के रूप में मान्य हो गए थे। भारत के प्रत्येक प्रदेश में पुरुषादानीय पार्श्वनाथ के अतिशयपूर्ण एवं विख्यात कई-कई तीर्थस्थल हैं। जिनप्रभसूरि ने ही 'चतुरशीति महातीर्थनाम संग्रह कल्प' में पार्श्वनाथ के 15 महातीर्थों का उल्लेख किया है: 1. अजाहरा में नवनिधि पार्श्वनाथ, 2. संभाल में भवभयहर, 3. फलवर्धि में विश्वकल्पलता, 4. करहेड़ा में उपसर्गहर, 5. अहिच्छत्रा में त्रिभुवनभानु, 6-7. कलिकुण्ड और नागह्रद में श्री पार्श्वनाथ, 8. कुर्कुटेश्वर में विश्वगज, 9. महेन्द्र पर्वत पर छाया, 10. ओंकार पर्वत पर सहस्रफणा, 11. वाराणसी में भव्य पुष्करावर्तक, 12. महाकाल के अन्तर में पाताल चक्रवर्ती, 13. मथुरा में कल्पद्रुम, 14. चम्पा में अशोक और 15. मलयगिरि पर श्री पार्श्वनाथ भगवान् हैं। साथ ही पार्श्व के दस तीर्थों पर कल्प भी लिखे वि० सं० 1668 में विनयकुशल ने गोडी पार्श्वनाथ स्तवन में तथा 1881 में खुशलविजय ने पार्श्वनाथ छन्द में प्रभु पार्श्वनाथ के 108 तीर्थों का उल्लेख किया है। वहीं धीरविमल के शिष्य नयविमल ने पार्श्वनाथ के 135 तीर्थ-मन्दिरों का वर्णन किया है। इस प्रकार देखा जाए तो चिन्ताचूरक, चिनतमणिरत्न के समान मनोवांछापूरक पार्श्वप्रभु के नाम से वर्तमान समय में भारतवर्ष में शताधिक तीर्थ हैं, सहस्र के लगभग मन्दिर हैं और मूर्तियों की तो गणना भी सम्भव नहीं है, क्योंकि प्रत्येक मन्दिर में पाषाण एवं धातु की अनेकों प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। राजस्थान प्रदेश में तीर्थंकरों विशेषतः पार्श्वनाथ के पाँचों कल्याणकों में से कोई कल्याणक नहीं होने से यहाँ के पुरुषादानीय पार्श्वनाथ के सारे तीर्थ क्षेत्र अतिशय/चमत्कारी तीर्थों की गणना में ही आते हैं। राजस्थान में प्रभु पार्श्वनाथ के नाम से निम्न स्थल तीर्थ के रूप में अत्यधिक विख्यात हैं, जिनका संक्षिप्त परिचय अकारानुक्रम से प्रस्तुत है: 1. करहेड़ा पार्श्वनाथ - उदयपुर-चित्तौड़ रेलवे मार्ग पर करहेड़ा स्टेशन है। स्टेशन से एक कि०मी० पर यह गाँव है। यहाँ उपसर्गहर पार्श्वनाथ की श्यामवर्णी. प्रतिमा विराजमान है। नाहरजी के लेखानुसार सं० 1039 में संडेरकगच्छीय यशोभद्रसूरि ने पार्श्वनाथ बिम्ब की प्रतिष्ठा की थी। यहाँ 1303, 1306, 1341 आदि के प्राचीन मूर्तिलेख भी प्राप्त हैं। सुकृतसागर काव्य के अनुसार मांडवगढ़ के पेथड़ और झांझण ने यहाँ के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार करवा कर सात मंजिला भव्य मंदिर बनवाया था, किन्तु आज वह प्राप्त नहीं है। सं० 1431 में खरतरगच्छ के आचार्यों के द्वारा बड़ा महोत्सव हुआ और सं० 1656 में इसका जीर्णोद्धार हुआ था और वर्तमान में फक्कड़ वल्लभदत्तविजय जी के उपदेश से जीर्णोद्धार हुआ है। जिनप्रभसूरि रचित फलवर्द्धि पार्श्वनाथ कल्प के अनुसार यह करहेड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ प्रसिद्ध तीर्थों में से था। खरतरगच्छ की पिघलक शाखा का यहाँ विशेष प्रभाव रहा है। मेवाड़ के तीर्थों में पार्श्वनाथ का यह एकमात्र प्राचीन तीर्थ है। 318 लेख संग्रह

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