Book Title: Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 327
________________ 1326 868 1555 1529 776 नाहर-जैन लेख संग्रह, भाग 1 1529 नाहर-जैन लेख संग्रह, भाग 2 1531 735 विनयसागर-प्रतिष्ठा लेख संग्रह 1533 761 विनयसागर-प्रतिष्ठा लेख संग्रह 1533 1815 बीकानेर जैन लेख संग्रह 1533 विद्याविजय-प्राचीन लेख संग्रह 1533 737 नाहर जैन लेख संग्रह, भाग 1 1535 1098 नाहर जैन लेख संग्रह, भाग 2 1535 458 विद्याविजय-प्राचीन लेख संग्रह 1537 जैन धातु प्रतिभा लेख संग्रह, भाग 2 नन्दीवर्द्धनसूरि 1554 1123 बीकानेर जैन लेख संग्रह 1553 बीकानेर जैन लेख संग्रह 1555 2443 बीकानेर जैन लेख संग्रह 1555 प्रस्तुत लेख 1559 904 विनयसागर-प्रतिष्ठा लेख संग्रह 1562 915 विनयसागर-प्रतिष्ठा लेख संग्रह 1569 942 विनयसागर-प्रतिष्ठा लेख संग्रह 1570 1620 नाहर जैन लेख संग्रह, भाग 2 1570 1693 नाहर जैन लेख संग्रह, भाग 2 1571 947 विनयसागर-प्रतिष्ठा लेख संग्रह . मोरखाणो सुसाणी देवी का लेख 1576 विनयसागर-प्रतिष्ठा लेख संग्रह 1576 विनयसागर-प्रतिष्ठा लेख संग्रह 1576 1303 नाहर-जैन लेख संग्रह, भाग 2 1577 964 विनयसागर-प्रतिष्ठा लेख संग्रह नंदीवर्द्धनसूरि सं० 1554 के लेख में गच्छ का नाम राजगच्छ या धर्मघोषगच्छ न होकर सुराणागच्छ है जो गच्छ और सुराणा गोत्र की एकरूपता प्रतिपादित करता है: संवत् 1554 व० पौष व० बुधे सुराणा गोत्रे सा० चीचा भा० कुंती षु मेघा भा रंगी पु० सूर्यमल्ल स्वपुण्यार्थ श्री वासुपूज्य बिंब कारितं प्र० सुराणा गच्छे श्री पद्माणंदसूरि पट्टे श्री नन्दिवर्द्धनसूरिभिः जालुरवास्तव्यः ११वीं शती से १६वीं शती तक इस गच्छ के आचार्यों का राजस्थान के राजाओं पर तथा राजस्थानी जनजीवन पर बहुत विस्तृत प्रभाव रहा है तथा इनके द्वारा साहित्य-सर्जना भी विपुल हुई है। अतः इस गच्छ के कार्यकलापों का अनुसन्धान होना अत्यावश्यक है। इतिहासकारों से निवेदन है कि इस लेख में चर्चित परमारवंशी सूर का पृथ्वीराज चौहान से सम्बद्ध, शाकम्भरी नरेश साल्हणराज, भट्टिराय तथा फलवर्द्धिका देवी का नाम ब्रह्माणी माता आदि प्रसंगों को स्पष्ट करने का प्रयत्न करें। [राजस्थान भारती भाग-९, अंक-४] 1573 958 959 15 316 लेख संग्रह

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