Book Title: Lekh Sangraha Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 325
________________ 1. शाकम्भरी नरेश विग्रहराज (विसलदेव) को प्रतिबोध देकर इन्होंने अजमेर में शान्तिनाथ, मन्दिर राजविहार-का निर्माण करवाया जिसकी प्रतिष्ठा स्वयं धर्मसूरि ने करवाई थी। इस राजविहार की प्रतिष्ठा के समय अरिसिंह मालवमहीन्द्र उपस्थित थे। 2. नृपति विग्रहराज चौहान की मातुश्री सूहवदेवी ने सूहवपुर में पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। 3. शाकम्भरी अर्णोराज धर्मसूरि का भक्त था। इसी की सभा में दिगम्बरवादी गुणचन्द्र को . . धर्मसूरि ने पराजित किया था। उपर्युक्त प्रशस्ति में तथा राजगच्छ पट्टावली अर्णोराज के स्थान पर 'राज्ञोऽनलस्य' तथा 'नरपते रल्हणाख्यस्य' अनल और अल्हन नाम प्राप्त होते हैं अतः अनल और अल्हण अर्णोराज के ही बोलचाल के नाम मानना समुचित होगा। 4. इनके उपदेश से भर्तृकराज (भट्टियराउ) ने नेमिनाथ मन्दिर का निर्माण करवाया था। यह भट्टियराय कहाँ का अधिपति था, शोध का विषय है। 5. वि० सं० 1181 में फलवर्द्धि पार्श्वनाथ चैत्य की प्रतिष्ठा आपने करवाई। 6. सुसाणी देवी को प्रतिबोध देकर सम्यक्त्वव्रती बनाकर, सुराणा गोत्र की कुलदेवी के रूप में स्थापना की। 7. ब्राह्मण, क्षत्रिय और माहेश्वरीय वैश्यों को प्रतिबोध देकर ओसवालों के 105 गोत्र तथा श्रीमालों के 35 गोत्र नये स्थापित किये। 8. सौरवंश के मोल्लण परमार को जैन बनाकर सुराणा गोत्र स्थापित किया। प्रशस्ति में धर्मसूरि को 'भूपत्रयाणां गुरु' लिखा है, विग्रहराज, अर्णोराज के अतिरिक्त तीसरा नरेश कौन है? शोध का विषय है। आचार्य धर्मसूरि की पट्टपरम्परा में क्रमशः सागरचन्द्रसूरि, मलयचन्द्रसूरि, ज्ञानचन्द्रसूरि, मुनिशेखरसूरि, पद्मशेखरसूरि, पद्माणंदसूरि और नन्दिवर्द्धनसूरि हुए। फलवर्द्धिका देवी मंदिर के प्रतिष्ठाकारक नन्दिवर्द्धनसूरि हैं / सं० 1555 में इनके गुरु पद्माणंदसूरि विद्यमान थे। इन दोनों आचार्यों के सम्बन्ध में प्रतिष्ठा लेखों के अतिरिक्त कोई भी विशिष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं है। अद्यावधि प्रकाशित मूर्तिलेखों में पद्माणंदसूरि का सबसे प्राचीन लेख सं. 1504 का है। सं० 1537 से 1. वही तथा रविप्रभसूरि कृत धर्मघोपसूरि स्तुति पद्य 28 से 30 2. वही तथा रविप्रभसूरि कृत धर्मघोपसूरि स्तुति पद्य 28 से 30 3. राजगच्छ पट्टावली, पृ० 66 / 4. राजगच्छ पट्टावली, पृ० 66, फलवर्द्धिका देवी प्रशस्ति पद्य 36, रविप्रभसूरि कृत धर्मघोपसूरि स्तुति पद्य 26, 27 5. पाटण केटलॉग ऑफ मेन्युस्क्रिप्ट्स, पृ० 307-308 धर्मघोपसूरि स्तोत्र 6. विविधतीर्थकल्प, पृ० 106 7. मोरखाणा लेख 8. फलवर्द्धिकादेवी प्रशस्ति पद्य 36 तथा राजगच्छ पट्टावली, पृ०६६ 314 लेख संग्रह

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