Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan Author(s): Chandrita Pandey Publisher: Ilahabad University View full book textPage 4
________________ वर्तमान, भूत और भविष्य तथा दो सिर हैं सुप् और तिइ.। सप्त विर्भाक्तयाँ - प्रथमा, द्वितीया एवम् तृतीयादि इसके सात हाँध हैं । उर, कण्ठ और सिर इन तीनों स्थानों में बांधा गया है । इस प्रकार यह महान् देव है, जो मनुष्यों में समाहित है। वररुचि के अनुसार व्याकरण के अध्ययन के पांच प्रयोजन अधोलिखित हैं : 1. रक्षा - व्याकरण के अध्ययन का प्रधान लक्ष्य वेद की रक्षा है । 2. उह - ह का अर्थ नये पदों की कल्पना से है। 3. आगम - स्वयं श्रुतिही व्याकरण के अध्ययन के लिये प्रमाणभूत है । 4. लघु - लछुता के लिए भी व्याकरण का पठन-पाठन आवश्यक है । 5. सन्देह - वैदिक शब्दों के विषय में उत्पन्न सन्देह का निराकरण व्याकरण ही कर सकता है । व्याकरण की इसी भूयसी उपयोगिता के कारण प्रस्तुत विषय मेरे शोध-प्रबनः का प्रयोजन बना । मुझे शिक्षा के सवोच्च सोपान तक पहुंचाने में प्रमेरी ममतामयी जननी श्रीमती चन्द्रमोहनी मिश्रा, प्रवत्री राजकीय बालिका इण्टर कालेज, शंकरगढ़, इलाहाबाद, एवम् पूज्य पिता श्री राधेयाम मिश्र, प्रोफेसर संस्कृत विभाग, रीवा विश्वविद्यालय, का सर्वोपरि योगदान है जिसके लिए किसी भी प्रकार का आभारप्रदर्शन उस निबनुष वात्सल्य एवम् सहज स्नेह के गौरव का अपकर्षक होगा । वस्तुतः प्रस्तुत गोध-प्रबन्ध मेरी माता एवं पिता के अन्ड सौभाग्यशाली पुण्यों का ही फलPage Navigation
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