Book Title: Kya Dharm Me Himsa Doshavah Hai
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 9
________________ पन्थ में कोई भी सच्चा सन्त नहीं है, सभी ढोंगी और मिथ्या दृष्टि ही हैं। क्योंकि आगम- दिवाकर आ. श्री चौथमलजी म. ने अपने साधुओं के ग्रुप फोटो छपवाकर बांटे थे, आचार्य श्री मिश्रीमलजी म.सा. का समाधि मन्दिर जैतारण (जि. पाली) में बना है । आ. श्री गणेशमलजी की 6 फुट की मूर्ति एवं मन्दिर औरंगाबाद में बना है । आ. श्री आनन्द ऋषिजी का स्मारक अहमदनगर में बना है। आ. श्री हस्तीमलजी म. का स्मारक निमाज (तह.- जैतारण, जि. पाली) में बन रहा है, जहां 'अस्थिकुम्भ' की स्थापना का विवाद कोर्ट तक पहुंचा है। मेरठ, आगरा, दिल्ली, राजगिरि वीरातन आदि में भी समाधि मन्दिर बने हैं। यानी आज पूरापूरा स्थानकवासी मार्ग मूर्ति-पूजा को दिल से चाहने लगा है। क्योंकि अब आगमदिवाकर कहे जाने वाले स्थानकवासी संत भी फोटो-मूर्ति छपवाने लगे हैं, फिर औरों का तो मूर्ति - समर्थन के विषय में क्या कहना ? जहाँ तक आरम्भ समारम्भ का सम्बन्ध है, उक्त लिखने वाले सम्पादक श्री नेमिचन्द बांठिया भी स्थानकवासी नहीं रहे। वे अपने स्वयं के लिखे हुए शब्दों से ही ढोंगी एवं मायाचारी सिद्ध हुए हैं। क्योंकि वे खुद 'सम्यग्दर्शन' पत्रिका छापने का आरम्भ समारम्भ और हिंसा धर्म के नाम पर करते ही हैं। करनी - कथनी में आकाश-पाताल का अन्तर बांठिया जी लिखते हैं कि यदि स्थानकवासी परम्परा के चतुर्विध संघ का कोई भी घटक आरम्भ-समारम्भ एवं हिंसा युक्त कार्य करके उसमें आत्म-कल्याण एवं धर्म की प्ररूपणा करता (5)

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