Book Title: Kya Dharm Me Himsa Doshavah Hai Author(s): Bhushan Shah Publisher: Chandroday ParivarPage 26
________________ हमारा यह प्रश्न है कि यदि लोकाशाह के पूर्व में भी स्थानक पन्थ था तो फिर (1) लोकाशाह के गुरु का नाम क्या था? (2) लोकाशाह के पूर्व में स्थानक पन्थ में कौन-कौन से बड़े आचार्य आदि हुए? (3) उनके नाम क्या-क्या थे? (4) लोकाशाह के गुरु के गुरु का नाम क्या था? (5) उन्होंने कौन से शास्त्र लिखे? (6) : उन्होंने कौन-से शासनोन्नतिकारी, शासन प्रभावक कार्य किये थे? सत्य यह है कि स्थानकवासी पन्थ अनागमिक है, भक्ष्याभक्ष्य का विवेक भी नहीं जानता है, उनके सन्त जो चाहे वैसी शास्त्र निरपेक्ष प्रवृत्तियां कर रहे हैं। स्वयं लोकाशाह के विषय में इतिहासविद् सत्यप्रिय स्थानकवासी पण्डित श्री नगीनदास गिरधरलाल शाह अपनी ऐतिहासिक सुप्रसिद्ध किताब 'लोकाशाह और धर्मचर्चा' में लिखते हैं कि ___"....... लोकाशाह ने धर्म का उद्धार किया ही नहीं था, सत्य पूछो तो उन्होंने अधर्म का ही प्रतिपादन किया था। पृ.29। ....... लोकाशाह को अर्धमागधी भाषा का ज्ञान नहीं था। पृ. 25 ...... लोकाशाह ने फक्त क्रोध और द्वेष से ही सूत्रों का तथा मूर्ति पूजा का विरोध किया था और स्थानकवासियों ने सूत्रों के गलत-खोटे अर्थ करके मूर्ति पूजा का निषेध किया है। इसलिए इनके कार्यों में धर्म का उद्योत तो है ही नहीं, किन्तु धर्म की हानि ही है। पृ. 29 ..... अधर्म की प्ररूपणा करने वाले और जैन समाज में धर्म विरुद्ध की बातों और धर्म विरुद्ध सिद्धान्तों को फैलाने वाले व्यक्ति (लोकाशाह) को अपने आप्त (मान्य) पुरुष के रुप में मानना, यह जैन धर्मी के लिए मिथ्यात्व को अपनाने जैसा है। पृ. 47। समीक्षा : स्थानकवासी विद्वान श्री नगीनदांस गिरधरलाल शेठ के अनुसार लोकाशाह धर्मप्राण नहीं अपितु धर्मनाशक ही थे। इसलिए स्थानकवासी (22)Page Navigation
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