Book Title: Kya Dharm Me Himsa Doshavah Hai
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 30
________________ ऐसी हे निषिद्ध प्रवृत्ति करते तो उनकी आकाशगामिनी विद्या ही नाश हो जाती है। 'बांठिया जी लिखते हैं- 'वे वहां जाकर ज्ञानियों के ज्ञान को वन्दन करते हैं', यह भी असत्य है । क्योंकि ज्ञान अरूपी होता है, ज्ञान का ढेर नन्दीश्वर द्वीप में है नहीं । बांठिया जी लिखते हैं- 'वे वहां जाकर ज्ञानी के वचन को सत्य जानकर ज्ञानी के ज्ञान को वन्दन करते हैं ।' यह बात भी असत्य है । क्योंकि यदि इन चारणमुनि के हृदय में ज्ञानियों के ज्ञान के प्रति थोड़ी-सी भी शंका- अश्रद्धा होती यानी वे सम्यग्दर्शन रहित होते, तो उनको आकाशगामिनी लब्धि ही उत्पन्न नहीं होती । भगवान के वचन को असत्य मानने वाला छठा या सातवां गुणठाणा तक पहुंच सकता ही नहीं है । अर्थात यह मानना ही पड़ेगा कि - "लब्धिधर चारणमुनि नन्दीश्वर द्वीप स्थित शाश्वत जिन चैत्यों (जिन-मंदिर व जिनमूर्ति) को प्रणाम करने के लिए ही वहां जाते हैं।" । 5. स्थानकवासी के गुरु-वन्दन के सूत्र तिखुतो में 'चेइयं पज्जुवासामि' ऐसा पाठ हैं। यहां चेइयं का अर्थ है चैत्य यानी जिन मन्दिर व जिनमूर्ति | अर्थात हे गुरुदेव ! मैं आपकी जिन मंदिर व जिनमूर्ति की तरह उपासना करता हूं। स्थानकवासी सन्त चेइयं का अर्थ गान करते हैं, यह सर्वथा असत्य है । जिस प्रकार चैत्यवास का अर्थ चैत्य में रहने वाले यानी जिनमन्दिर में रहने वाले ( मुनि) ऐसा होता है, उसी प्रकार 'चेइयं' का अर्थ चैत्य यानी जिन मंदिर होता है, पर ज्ञान नहीं । पूरे जैनागम में, कोष या व्याकरण में चैत्य के लिए ज्ञान शब्द नहीं आया है। जैसे ज्ञान के भेद मति ज्ञान, श्रुतज्ञान ऐसा लिखा है किन्तु कहीं पर भी मतिचैत्य, श्रुतचैत्य इत्यादि नहीं लिखा है । 9 चेयं, जिणधर, जिणपडिमा चेइयाणं, चैत्यवन्दन, चैत्य इत्यादि आगमिक सुप्रसिद्ध शब्द जिन मंदिर व जिनमूर्ति के अर्थ में (26)

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