Book Title: Kya Dharm Me Himsa Doshavah Hai Author(s): Bhushan Shah Publisher: Chandroday ParivarPage 31
________________ ही है। स्थानकवासी सन्त 'चेइयं' का सुप्रसिद्ध अर्थ जिन मन्दिर व जिनमूर्ति ऐसा न कर 'ज्ञान' ऐसा करते हैं, यह उनकी प्रत्यक्ष असत्यवादिता है। इसमें तो शब्दकोष, व्युत्पत्ति और व्याकरण भी असम्भव है। 6. श्री ज्ञाताधर्मसूत्र में द्रौपदी द्वारा सविस्तार की गयी जिनपूजा का वर्णन है। वहां शास्त्र वचन है, जिणपडिमाणं अच्चणं करेइ अर्थात जिन प्रतिमा को अर्चन-पूजन करती है। असत्य भाषी स्थानकवासी सन्त इस विषय में 'जिणपडिमा' का अर्थ जिण यानी कामदेव की मूर्ति ऐसा करते हैं। पर 'जिण' का अर्थ कामदेव की मूर्ति ऐसा करना असत्यपूर्ण हैं, क्योंकि नमुत्थुणं सूत्र में 'नमो जिणाणं' शब्द आता है, जिसका अर्थ है मैं जिन भगवान को नमस्कार करता हूं, ऐसाहोता है। यहां जिन यानी अरिहन्त भगवान ही होता है, न कि जिन यानी कामदेव। दूसरी बात यह है कि द्रौपदी सम्यग्दृष्टि हैं, वह उससे हलकानीचा मिथ्यात्वी कामदेव की पूजा क्यों करती? और ऐसा वर्णन सुधर्मागणधर सूत्र में क्यों करते? द्रौपदी यदि कामदेव की पूजा करती है तो यह तो सती द्रौपदी को नीचा दिखाना हुआ। अर्थात मानना ही पड़ेगा कि द्रौपदी ने ज्ञाताधर्म सूत्र कथित जिन मूर्ति की ही पूजा-उपासना की है। ___7. सूयगडांग सूत्र में अभयकुमार ने आर्द्रकुमार को 'जिन मूर्ति' भेंट भेजी थी: ऐसा वर्णन आता है। सम्पादक श्री धर्मोपगरण' की भेट भिजवाने का असत्य लिखते हैं, पर उनके पास इस विषय में शास्त्र पाठ नहीं है कि अभयकुमार ने धर्मोपकरण भिजवाया था। _____8. श्री उपपात सूत्र में अम्बड श्रावक की सम्यग्दर्शन की प्रतिज्ञा में आता है कि 'न कप्पड़ में अज्जप्पभिई अन्न उत्थिय अरिहन्त चेइयाणि वन्दित्तए नमंस्त्तिए' अर्थात मैं (अंबड़ श्रावक) (27)Page Navigation
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