Book Title: Kya Dharm Me Himsa Doshavah Hai Author(s): Bhushan Shah Publisher: Chandroday ParivarPage 32
________________ प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज से मैं अन्य धर्मियों के हाथों में चले गये जिन मन्दिर - जिनमूर्ति को वन्दन या नमस्कार नहीं करूँगा । इस वृत्तांत से भी जिन मूर्ति शास्त्र सम्मत सिद्ध होती है । 9. श्री दशवैकालिक सूत्र के रचयिता 14 पूर्वधर श्री शय्यंभवसूरिजी के वृत्तांत में भी जिन मूर्ति की बात आती है। - 10. श्री भगवती सूत्र में उदायन राजा का चण्डप्रद्योत के साथ जिन प्रतिमा के कारण युद्ध हुआ था, यह वृत्तांत आता है। 11. रायपसेणी सूत्र में सूर्याभदेव ने शाश्वत् जिनेश्वर जिन प्रतिमा की पूजा की है। वहां 'धूवं दाउण जिणवराणं' कहकर जिन प्रतिमा को साक्षात् जिनेश्वर ही माना है। कहा भी है- 'जिन प्रतिमा जिन सरिखी', सिद्धान्तं भाखी । मूर्तिपूजा इतिहास से भी सिद्ध है 1. उड़ीसा में स्थित उदयगिरी और खण्डगिरि की गुफाओं में रही जिन मूर्ति और प्राचीन शिला लेख से भी मूर्ति पूजा सिद्ध होती है । यह शिलालेख करीब 2200 वर्ष प्राचीन हैं, इसमें राजा खारबेल ने भगवान आदिनाथ की मूर्ति का नाम 'कलिंग जिन' इस प्रकार लिखा है । (देखिए जैन धर्म का मौलिक इतिहास, खण्ड 3 ) 2. एलोरा (औरंगाबाद, महाराष्ट्र) की चार गुफाएँ जैन धर्म से सम्बन्धित हैं । जिसमें अहिन्त व सिद्ध की प्रतिमा करीब 2100 वर्ष पुरानी है। 3. मोहनजोदड़ो की खुदाई से मिले प्राचीन अवशेष में भगवान ऋषभदेव, भरतमुनि, बाहुबली मुनि, भगवान ऋषभदेव का लंछन वृषभ आदि मूर्तियों से इतिहासविदों का यह कहना है कि पांच हजार वर्ष पूर्व में भी जैन धर्म में मूर्ति की मान्यता थी । (देखिए : यंग लीडर दैनिक हिन्दी, अहमदाबाद की आवृति, दि. 21-3-96 ) (28)Page Navigation
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