Book Title: Kya Dharm Me Himsa Doshavah Hai
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 8
________________ धारण करने वाले, अपने गुरुओं के समाधि स्थान, चरण पादुका अथवा मूर्ति आदि जो बनवाते हैं, तो वे स्थानकवासी के वेष में बहुरूपिये हैं। वे वेष से भले ही अपने आपको स्थानकवासी कहने का ढोंग रचे, किन्तु उनकी प्रवृत्तियाँ स्थानकवासी मान्यता परम्परा एवं वीतराग प्रभु की आज्ञा के विरुद्ध होने से वे स्थानकवासी पन्थ के भेष में होते हुए भी ढोंगी, मायाचारी, महाव्रतों के भंजक, प्रभु आज्ञा के विराधक, चतुर्विध संघ के समक्ष ली गई प्रतिज्ञा को खण्डन करने वाले, छह काय के भक्षक, वीतराग प्रभु के शासन की ही तुलना करने वाले और जिन - शासन के भेष को लज्जित करने वाले है। अतएव भेष से स्थानकवासी होते हुए भी कर्म से (व्यवहार से) वे सम्यग्दृष्टि भी नहीं कहे जा सकते। + + + + (पृ.149) - + + + + जो भी स्थानकवासी के भेष में आरम्भकारीपापकारी प्रवृत्तियाँ करते हैं, करवाते हैं अथवा करने वालों का अनुमोदन मात्र भी करते हैं, वे स्थानकवासी हैं ही नहीं। (q. 149) + + + + + + + स्थानकवासियों के कतिपय वेषधारियों द्वारा अपने गुरुओं के समाधि स्थल, मूर्ति आदि निर्माण के जो कार्य किये और करवाये जा रहे हैं, वे एकान्त साधु मर्यादा एवं वीतराग प्रभु की आज्ञा के विरुद्ध होने से निन्दनीय हैं। ++++ (q. 149) + + + यदि स्थानकवासी परम्परा के चतुर्विध संघ का कोई भी घटक आरम्भ - समारम्भ एवं हिंसायुक्त कार्य करके उसमें आत्मकल्याण एवं धर्म की प्ररूपणा करता है, करवाता है और उसकी अनुमोदना भी करता है, तो वह निन्दनीय है। +++ (पृ. 14 ) 'सम्यग्दर्शन पत्रिका' (दि. 5-1-96) समीक्षा : बांठिया जी के उपरोक्त उक्त विधानों से यह निश्चय हो ही जाता है कि आज स्थानकवासी (4) -

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