Book Title: Kya Dharm Me Himsa Doshavah Hai Author(s): Bhushan Shah Publisher: Chandroday ParivarPage 10
________________ है, करवाता है और उसकी अनुमोदना भी करता है, तो वह निन्दनीय है। ........... ('सम्यग्दर्शन' पृ. 14, 15-1-96) श्री घीसूलालजी पीतलिया ('सम्यग्दर्शन' 5 मार्च, 96) लिखते हैं कि '.... धार्मिक प्रयोजनों के लिए हिंसा करना यह दुर्लभ बोधि का कारण है, धर्म के लिए हिंसा करने वाले सम्यकत्व प्राप्ति से दूर चला जाता है। .......' श्री नेमिचन्दजी बांठिया सम्पादकीय में लिखते हैं कि .... जहांजीव-हिंसा है वहाँतीन काल में धर्म एवं आत्म-कल्याण हुआ नहीं, होता नहीं और होगा नहीं, चाहे वह भगवान के नाम पर और अनन्तान्त भक्ति के साथ ही क्यों न की जाय ? ..... (पृ. 11 दि. 5-1-96).... ....... क्या हिंसा में महा-अहिंसा और आरम्भ-समारम्भ में आत्म-कल्याण मानने वाले सत्यवादी और प्रभुमहावीर के उपासक हो सकते हैं? कदापि नहीं। ..... 5.761, दि. 5-11-95 समीक्षा:सम्पादक श्री और प्रायः सभीस्थानक वासी सन्त यही कहते हैं कि आरम्भ-समारम्भ में और जहाँ जीवों की हिंसा होती है, वह कार्य हेय है, पाप है, धर्म है, और इसमें जिज्ञासा नहीं है। फिर प्रश्न यह होता है कि ऐसा लिखने-बोलने वाले :. (1) स्थानकवासी सन्त अपनी फोटो क्यों खिंचवाते हैं? इनमें भी अग्निकाय, अपकाय आदिजीवों की हिंसा होती है। (2) स्थानकवासी सन्त स्थानक बनवाने की प्रेरणा-उपदेश क्यों देते हैं? उन्हें तो ऐसा उपदेश देना चाहिए कि 'स्थानक बनवाना पाप है, क्योंकि इसमें स्थावर और त्रसकाय जीवों की बड़ी हिंसा होती है, इसलिए स्थानक बनवाना अधर्म है और इसमें धन खर्च करने वाला पापी होता है और दुर्गति में जाने वाला है, इत्यादि।'Page Navigation
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