Book Title: Khartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 14
________________ (३७८), मुनि श्री कान्तिसागर (३८०)। ३. ० महान् प्रतापी श्री मोहनलालजी का समुदाय (३८१-३९८), १. मोहनलालजी महाराज (३८१), २. आचार्य श्री जिनयश:सूरि (३८२), ३. आचार्य श्री जिनऋद्धिसूरि (३८५), ४. आचार्य श्री जिनरत्नसूरि (३८७), उपाध्याय श्री लब्धिमुनि (३९२), गणिवर्य श्री बुद्धिमुनि (३९४), मुनि श्री जयानन्द (३९६), श्री मोहनलालजी महाराज के समुदाय का वंशवृक्ष (३९८) । खरतरगच्छ साध्वी-परम्परा का इतिहास - १ ३९९ - ४०७ श्री सुखसागर जी के समुदाय की साध्वी-परम्परा का इतिहास - २ ४०८ - ४२५ 0 साध्वी उद्योतश्री (४०८), १. प्रवर्तिनी श्री लक्ष्मीश्रीजी का समुदाय - (४०९ - ४१९) ०१. प्रवर्तिनी श्री लक्ष्मीजी, २. प्रवर्तिनी श्री पुण्यश्री (४०९), ३. प्रवर्तिनी श्री सुवर्णश्री (४११), ४. प्रवर्तिनी श्री ज्ञानश्री (४१२), ५. प्रवर्तिनी श्री विचक्षणश्री (४१३), ६. प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री (४१५),७. प्रवर्तिनी श्री तिलकश्री - श्री विनीताश्री - श्री चन्द्रकलाश्री (४१६), श्री चन्द्रप्रभाश्री - श्री मनोहरश्री - श्री सुरंजनाश्री (४१७), श्री मणिप्रभाश्री - श्री शशिप्रभाश्री - श्री सूर्यप्रभाश्री (४१८), श्री विमलप्रभाश्री - श्री दिव्यप्रभाश्री - श्री कमलश्री (४१९) । २. प्रवर्तिनी श्री शिवश्रीजी का समुदाय - ( ४२० - ४२५) ० प्रवर्तिनी श्री शिवश्री, १. प्रवर्तिनी श्री प्रतापश्री, २. प्रवर्तिनी श्री देवश्री (४२०), ३. प्रवर्तिनी श्री प्रेमश्री (श्री अनुभवश्री - श्री विनोदश्री - श्री हेमप्रभाश्री - श्री सुलोचनाश्री, श्री सुलक्षणाश्री) (४२१), ४. प्रवर्तिनी श्री वल्लभश्री, ५. प्रवर्तिनी श्री प्रमोदश्री (श्री प्रकाशश्री - श्री विजयेन्द्रश्री - श्री रत्नमालाश्री एवं डॉ० विद्युत्प्रभाश्री)(४२२), ६. प्रवर्तिनी श्री जिनश्री (४२३), ७. प्रवर्तिनी श्री हेमश्री, ८. महत्तरा श्री मनोहर श्री, ९. प्रवर्तिनी श्री विद्वान्श्री (४२२), श्री निपुणाश्री (४२५) परिशिष्ट - खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास - गत ४२६ - ५०४ १. प्रथम परिशिष्ट - आचार्य-साधु-साध्वियों की नाम सूची (४२६-४६३) द्वितीय परिशिष्ट - श्रावक-श्राविकाओं की विशेष नाम सूची (४६४-४८१) तृतीय परिशिष्ट - नृपति-मंत्री-दण्डनायक आदि सत्ताधारी जनों की विशेष नामानुक्रमणी (४८२-४८७) चतुर्थ परिशिष्ट - स्थलज्ञापक विशेष नामानुक्रमणी (४८८-५०४) २. Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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