Book Title: Kevalgyan Prashna Chudamani
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 6
________________ इस व्यावहारिक ज्योतिष-गणना के प्रयत्न की न्यूनतम सत्ता आज से २१,८०,२६६ वर्ष पूर्व सिद्ध होती है। इसी प्रकार मंगल के उच्च से विचार करने पर. १,१२,२६,३६० वर्ष तथा शनैश्चर के उच्च से विचार करने पर १,१२,०७,६६० वर्ष पूर्व इस जगत् में ज्योतिष के विकसित रूप में होने की सिद्धि होती है, जो आधुनिक संसार के लोगों के लिए, विशेषकर पाश्चात्य विज्ञानविशारदों के लिए बड़े आश्चर्य की सामग्री है। “ज्योतिषशास्त्रफलं पुराणगणकैरादेश इत्युच्यते...' आचार्यों के इस प्रकार के वचनों के अनुसार मानव-जगत् में विविध आदेश करना ही इस अपूर्व अप्रतिम ज्योतिषशास्त्र का प्रधान लक्ष्य है। इसी आदेश के एक अंग का नाम प्रश्नावगम तन्त्र है। इस प्रश्न-प्रणाली को जैन सिद्धान्त के प्रवर्तकों ने भी आवश्यक समझकर बड़ी तत्परता से अपनाया था और उसकी सारी विचारधाराएँ 'केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि' के रूप में लेखबद्ध कर सुरक्षित रखी थीं, किन्तु वह ग्रन्थ अत्यन्त दुरूह होने के कारण सर्वसाधारण का उपकार करने में पूर्णरूपेण स्वयं समर्थ नहीं रहा। अतः मेरे योग्यतम शिष्य श्री नेमिचन्द्र जैन ने बहुत ही विद्वत्तापूर्ण रीति से सरल, सुबोध, उदाहरणादि से सुसज्जित सपरिशिष्ट कर एक हृद्य-अनवध टीका के साथ इस ग्रन्थ को जनता जनार्दन के समक्ष प्रस्तुत किया है। इस टीका को देखकर मेरे मन में यह दृढ़ धारणा प्रादुर्भूत हुई कि अब उक्त ग्रन्थ इस विशिष्ट टीका का सम्पर्क पाकर समस्त विद्वत्समाज तथा जनसाधारण के लिए अत्यन्त समादरणीय और संग्राह्य होगा। टीका की लेखनशैली से लेखक की प्रशंसनीय प्रतिभा और लोकोपकार की भावना स्फुट रूप से प्रकट होती है। हमें पूर्ण विश्वास है कि ज्योतिषशास्त्र में रुचि रखनेवाले सभी बन्धु इस टीका से लाभ उठाकर लेखक को अन्य कठोर ग्रन्थों को भी अपनी ललित लेखनी से कोमल बनाने के लिए उत्साहित करेंगे। श्री रामव्यास ज्योतिषी अध्यक्ष, ज्योतिष विभाग संस्कृत महाविद्यालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय १७ जनवरी, १६५०

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