Book Title: Kavyashatakam Mulam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 632 ] / काव्यषट्कं अक्षसूत्रगतपुष्करबीजश्रेणिरस्य करसंकरमेत्य / '' शौरिसूक्तजपितुः पुनरापत्पद्मसचिरवासविलासम् / / 48 / / कैट भारिसदयोनंतमूर्ना सञ्जिता विचकिलम्रगनेन / जह नुजेव भुवनप्रभुणाऽभात्सेवितानुनयतायतमाना / / 49 / / स्वानुरागमनघ: कमलायां सूचयन्नपि हृदि न्यसनेन / गौरवं व्यधित वागघिदेव्याः श्रीगृहोर्ध्व निजकण्ठनिवेशात् // 50 / / इत्यवेत्य वसुना बहुनापि प्राप्नुवन्न मुदमर्चनया सः / 10 मुक्तिमौक्तिकमय रथ हारभक्तिमहंत हरेपहारैः / / 51 / / दूरतः स्तुतिरवाग्विषयस्ते रूपमस्मभिधा तव निन्दा / तत्क्षमस्व यदहं प्रलपामीत्युक्तिपूर्वमयमेतदवोचत् / / 52 / / स्वप्रकाश ! जड एष जनस्ते वर्णनं यदभिलष्यति कर्तुम् / नन्वहर्पतिमहः प्रति स स्यान्न प्रकाशनरसस्तमसः किम् // 53 / / मैत्र वाङ्मनसयोविषयो भू स्त्वां पुनर्न कथमुद्दिशतां ते / उत्कचातकयुगस्य घन: स्या तृप्तये घनमनाप्नुवतोऽपि // 54 / / छद्ममत्स्यवपुषस्तव पुच्छास्फालनाज्जल मिवोद्धतमब्धेः / श्वैत्यमेत्य गगनाङ्गणसङ्गादाविरस्ति विबुधालयगङ्गा / 55 // भूरिसृष्टिधृतभूवलयानां पृष्ठसीमनि किणैरिव चक्रः / 25 चुम्बितावतु जगत्क्षितिरक्षा कर्मठस्य कमठस्तव मूर्तिः / / 56 / /
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