Book Title: Kavyashatakam Mulam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 957
________________ [ काव्यषट्कं श्रीप्रियस्य सहगेव तव श्री वत्समात्महृदि धर्तुमजस्रम् // 86 / / तावकापरतनोः सितकेशस्त्वं हली किल स एव च शेपः / साध्वसाववतरस्तव धत्ते सज्जरच्चिकुरनालविलासः / / 84 / / हृद्यगन्धवह ! -भोगवतीश: शेषरूपमपि बिभ्रदशेषः / भोगभूतिमदिरारुचिरश्रीरुल्लसत्कुमुदबन्धुरुचिस्त्वम् / / 8 / / रेवतोश ! -सुषमा किल नीलस्याम्बरस्य रुचिरा तनुभासा। कामपाल ! भवतः कुमुदाविर्भावभावितरुचेरुचितैव / / 86 / / एकचित्तततिरद्वयवादि नत्रयीपरिचितोऽथ बुधस्त्वम् / पाहि मां विधुतकोटि चतुष्क: पञ्चबाणविजयी षडभिज्ञः // 87 / / सत्र मारजयिनि त्वयि साक्षात्कुर्वति क्षणिकतात्मनिषेधौ / पुष्पवृष्टिरपतत्सुरहस्तात्पुष्पशस्त्रशरसंतति रेव // 88 / / तावके हृदि निपात्य कृतेयं मन्मथेन दृढधैर्यतनुत्रे / कुण्ठनादतितमां कुसुमानां छत्रमित्रमुखतैव शराणाम् // 86 / / यत्तव स्तवविधौ विधिरास्ये चातुरी चरति तच्चतुरास्यः / त्वय्यशेषविदि जाग्रति शर्वः - सर्वविद्वतया शितिकण्ठः // 60 / / धूमवत्कलयता युधि कालं म्लेच्छकल्पशिखिना करवालम् / कल्किना दशतयं मम कल्कं त्वं व्युदस्य दशमावतरेण / !61|| 25 देहिनेव यशसा भ्रमतोव्या पाण्डरेण रणरेणुभिरुच्चैः /

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