Book Title: Kavyashatakam Mulam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 648 ] [ काव्यषट्क // 22 // द्वाविंशः सर्गः॥ उपास्य सांध्यं विधिमन्तिमाशा रागेण कान्ताधरचुम्बिचेताः। अवाप्तवान् सप्तमभूमिभागे भैमीधरं सौधमसौ घरेन्द्रः // 1 // प्रत्युव्रजन्त्या प्रियया विमुक्तं पर्यङ्कमङ्कस्थितसज्जशय्यम् / अध्यास्य तामप्यधिवास्य सोऽयं संध्यामुपश्लोकयति स्म सायम् // 2 // 10 विलोकनेनानुग्रहाण तावद्दिशं जलानामधिपस्य दारान् / अकालि लाक्षापयसेव येयमपूरि पकैरिव कुङ्कुमस्य / / 3 / / उच्चस्तरादम्बरशैल मौलेश्च्युतो रविगैरिकगण्डशैलः / तस्यैव पातेन विंचूर्णितस्य संध्यारजोराजिरिहोज्जिहीते / / 4 / / अस्ताद्रिचूडालयपक्कणालि च्छेकस्य किं कुक्कुटपेटकस्य / यामान्तकजोल्लसितैः शिखौघ दिग्वारुणी द्रागरुणीकृतेयम् पश्य द्रुतास्तंगतसूर्यनिर्य करावलीहैङगुलवेत्रयात्र। निषिध्यमानाहनि संध्ययापि रात्रिप्रतीहारपदेऽधिकारम् महानट: किं नु सभानुरागे संध्याय संध्यां कुनटीमपीशाम् / तनोति तत्वा वियतापि तार श्रेणिस्रजा सांप्रतमङ्ग ! -हारम् / / 7 / /
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