Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 6
________________ प्रस्तावना किसी भी देश के साहित्य का जन्म शून्य में नहीं होता । लेखक मपने युग जीवन, परिस्थितियों से सवा प्रभावित होकर मुगधर्मी साहित्य की रचना करता है, किन्तु कुछ ऐसे भी साहित्यकार होते हैं जो तारकालिक युग, समाज तथा राजनैतिक परिस्थितियों से प्रभावापन्न होकर भी शाश्वत, चिरंतन सस्य का ही अंकन साहित्य में करते हैं। लोकोपकार से भी अधिक मात्मपरितोष की भावना उनमें अन्तनिहित रहती है । कविवर बुषजन एक ऐसे ही संत परम्परा के कवि थे, जो जानकपीएम की प्रत छवि का अन्तदर्शन कराना चाहते थे। फकिवर जिस युग में उत्पन्न हुए थे बह प्रकारहवीं शताब्दी का महत्त्वपूर्ण भाग था 1 इस समय तक महाराजा सवाई पृथ्वीसिंहजी राजस्थान के प्रमुख नगर जमपुर में भली-भांति राज्य-सिंहासन पर प्रारूढ़ हो चुके थे। उनके कुछ समय पश्नात् ही महाराजा सवाई प्रतापसिह विद्या-रसिक नरेश हुए। उन्होंने अमृतसागर, शतकत्रय मंजरी और बृजनिधि ग्रंथावली मादि कई ग्रन्थों की रचना की। उनके अनन्तर महाराजा सवाई जगतसिंह हुए । उनके स्वर्गवास के अनन्तर महाराजा सवाई जयसिंह (तृतीय) राज्य गद्दी पर प्रारुल हए । उनका शासन कास वि० सं० १८७५ पौषबदी ६ से १८९२ माह सुदी चतुर्थी तक माना जाता है। इनके ही शासनकाल में कविवर बुधजन ने अनेक रचनाओं का प्रणयन किया । स्वयं कवि ने अपनी रचनाओं में सवाई जयसिंह (तृतीय) तथा महाराजा रामसिंह (द्वितीय) का नामोल्लेख किया है, जिससे स्पष्ट है कि कवि ने इन दो नरेशों का शासनकाल अपने जीवन में देखा था । यद्यपि राजनैतिक दृष्टि से यह शान्ति-पूर्ण काल नहीं रहा, क्योंकि महाराजा सवाई जयसिंह के समय में काबुलियों ने उपद्रव किये थे, किन्तु कुल मिलाकर मालोच्यकाल में शान्ति रही । शासन में भी कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुए । जयपुर नगर को बसाने का श्रेय महाराजा सवाई जयसिंह (दितीय) को है। कवि की मालोच्यमान कृतियों के माधार पर यह अनुमानित किया गया है कि उनका जन्म वि० स० १८२० के लगभग एवं मृत्यु वि. स. १८६५ के पश्चात् हुई होगी। प्राप्त प्रमाणों के आधार पर यह निश्चित है कि इनकी प्रथम कृति का रचनाकाल वि० सं० १८३५ है । अतः यदि कवि ने १५ वर्ष की अवस्था में रचना प्रारंभ की हो तो भी उनका जन्म वि० सं० १५२० ठहरता है। इसी प्रकार उनकी अंतिम कृति "योगसार' भाषा का रचनाकाल वि० सं० १८६५ है । अतः उस समय

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