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एक दिन गोमती के पुल पर ।
बनारसी ने नारी सौन्दर्य का क्या खूब वर्णन किया है।
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बनारसी, तुमने तो प्रेम भरी कविताओं का नवरस ग्रन्थ, रच डाला है.
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मैंने मिथ्या सौन्दर्य का पूरा) (इसके पन्ने गोमती के "वक्ष में समा जाएं यही ठीक है ।
ग्रन्थ ही रच डाला है।
हाय! अब तो उस पांडुलिपि मैं अब ऐसी को समेटना असंभव है। रचनाएं नहीं करूंगा।
नवरस ग्रन्थ के पन्ने नदी में फेंक दिए !
. इस मनोरम स्थान पर उनका, रसास्वादन कराओ।
बनारसीदास बात- व्यवहार में | एक सज्जैन हो उठे थे।
(मैं आपको
प्रणाम
करता हूं।
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'अरे..अरे! यह क्या किया।
. अब अपना मन नैतिक और धार्मिक चिन्तन में लगाऊंगा।
उनकी चरित्रहीनता से जो लोग उन्हें धिक्कारते थे वे अब प्रशंसा करने लगे।
'अरे, बनारसी
दास तो एक दम बदल गया है।