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बनारसीदास का सारा समय आध्यात्म-चर्चा || तीसरी पत्नी भी नहीं रही जैसे रखन, अनवरत | और लेखन में व्यतीत होने लगा।
सारा पारिवारिक बंधनहीटटगया। लखन चलतारहा
| 'सक्ति रत्नमाला', शिव-पच्चीसी, राम-रावण अन्तर' | सबसे महत्वपूर्ण रचना है 'समयसार सहसआठोत्तर नाम' आदि बनारसीदास की उस समय | नाटक '। इसमें 727 पद है। की उल्लेखनीय रचनाएं है।
बनारसीदास ने 55 वर्ष की आयु में
अपनी आत्मकथा 'अकयानक 'लिखी। (मनुष्य की आयु 110 वर्ष की? होनी चाहिए। इसमें मेरी, आयु के 55 वर्षों का वृतांत है।
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23 एकबार उनकी भेंट / मैं रामचरित मानस की) महाकवि तुलसीदास यह प्रति आपको भेंट सेहुई थी।
करता हूं। मेश
(सौभाग्यहै भक्त-शिरो मणि।
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पीटामके पतिवादसल्य भावसे || कक पंक्तियां लिखकर | सन-1643ई। अचानक तुलसीदासने भगवान पार्श्वनाथ पर... उन्हें भेंट किया था। गलारुंधजाने सेवाक
शक्ति चली गई। एक और प्रेम,आदर्श,वीरता) और दूसरी ओर त्याग, अहिंसा जनमानसको दोनो की आवश्यकता है।
जिाहनाथपारसजगलपंकज
चितचरनन जास। रिद्धिसिद्धिकमला अजर राजति भजततलसीदास //