Book Title: Kavivar Banarasidas
Author(s): Akhil Bansal
Publisher: Bahubali Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'अर्द्धकथानकंपर आधारित चित्रकथा कविवर बाहबली प्रकाशन बनारसीदास //// / Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक: बाहबली प्रकाशन लालकोठी जयपुर-302015 मूल्य: चार रुपया प्रालेख: अखिल बंसल एम. ए. कविवर बनारसीदास भक्तिकालीन हिन्दी साहित्यकारों में कविवर बनारसीदास अग्रगण्य हैं। ३अपने जीवन के 55 वर्षों के आत्मकथ्य को उन्होंने ज्यों का त्यों "अर्द्ध कथानक" में उतारकर रख दिया। उनको इस आत्मकथा को हिन्दी साहित्य की सर्वप्रथम अात्मकथा कहलाने का गौरव प्राप्त है। 1586 ई० में जन्में इस कवि ने सम्राट अकबर का अन्तिम समय, जहांगीर का शासन काल और शाहजहां के शासन का प्रारम्भ बहत निकट से देखा था। ३ कविवर का सम्पूर्ण जीवन मौत बीमारी, अभाव, संघर्ष तथा कड़वे-मीठ अनुभव इ से परिपूर्ण था। बनारसीदास आशिकी में कई बार मिटे-बने । यहाँ तक कि ३ विदग्ध शृगार पर एक 'नवरस' ग्रन्थ ही रच डाला, किन्तु जब निर्वेद का अलख ३ उनमें सुलगा तो गोमती की धारा में अपनी उस श्रेष्ठ रचना को प्रवाहित कर दिया। व्यापार के सिलसिले में उनके जीवन का अधिकांश समय उत्तरप्रदेश के जौनपुर व आगरा में बोता। उस समय की राजनैतिक, सामाजिक स्थिति तथा ई ब्यापारियों की कठिनाईयों का बेलौस वर्णन उनकी आत्मकथा में सन्निहित है। एक के बाद एक रोचक घटनाओं से उनका जीवन भरा हुआ था। समयसार पढ़ने के उपरान्त दिगम्बर जैनधर्म में उनको अगाध एवं सच्ची ईश्रद्धा रही। 1636 ई० में उन्होंने समयसार नाटक की हिन्दी में पद्य की रचना को । उनकी प्रसिद्ध के लिए यही ग्रंथ काफी है। उनकी फुटकर रचनाओं का संकलन 'बनारसी विलास' में संग्रहीत है। आगरा में उनको भेट महाकवि इतुलसीदास से भी हुई थी। जब तुलसीदास ने रामचरितमानस पर उनका अभि३ मत चाहा तो उन्होंने लिखा बिराजै रामायण घट मांहि । मरमी होय मरम सो जान, मूरख जानै नाहि ॥ तुलसीदास जी ने भो भ० पार्श्वनाथ की स्तुति में कुछ छन्द बनारसीदास को लिखकर दिए उनमें से एक है जिहिनाथ पारस जुगल पंकज, चित्त चरनन जास। रिद्धि-सिद्धि कमला अजर, राजति भजत तुलसीदास ।। इस वर्ष कविवर बनारसीदासजी का 400 वाँ जन्म दिवस उत्साह पूर्वक भर में मनाया जा रहा है अतः उक्त प्रसंग पर कविवर के जीवन की महत्व३ पूर्ण घटनाओं पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से यह चित्रकथा प्रकाशित की जा रही है। इसका आलेख समन्वयवाणी के यशस्वी सम्पादक श्री अखिल बंसल ने ३ तैयार किया है तथा चित्रों से सजाया है बालहंस के सम्पादक श्री अनन्त कुशवाह ने । वैसे तो राजस्थान के अग्रणी पत्र राजस्थान पत्रिका में इसका प्रकाशन क्रमश हो चुका है, परन्तु देशभर में प्रचार-प्रसार की दृष्टि से इसका प्रकाशन पृथक से किया जा रहा है । आशा है यह कृति उपयोगी सिद्ध होगी। -श्रीमती शैल, एम. ए. प्रकाशिका चित्रांकन : अनन्त कुशवाहा प्रथम संस्करण : 5200 14 नवम्बर, 1987 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनारसीदास आलेख 'अखिल बंसल प्रस्तुति • अनन्त कुशवाहा ये जैन धर्म स्वीकार करने से पहले राजवंशीय राजपूत थे । प्रणाम मुनिराज । 1. बनारसी दास श्रीमाल वंशीय जैन थे। | इस वंश के लोग रोहतक शहर के निकटस्थ विहोली ग्राम में रहते थे। बनारसीदास के पिता का नाम खड़गसेन था । इनके व्यापार का क्षेत्र जौनपुर और आगरा था। वे पढे-लिखे थे और रत्नों के व्यवसाय में दक्ष थे । 17 जौनपुर में रहते हुए पुत्र प्राप्ति के लिए चिन्तित थे । सती माता का दर्शन करने चलें, पुत्र प्राप्ति की कामना से सपत्नीक खड़गसेन रोहतक की 1586 ई. में माघ शुक्ल, एकादशी, शनिवार -सती माता की पूजा करने वहां कई बार गए । 1 को एक पुत्र का जन्म हुआ- विक्रमजीत Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालक विक्रमजीत ही आगेचलकर बनारसीदासकेनामसे विख्यात P पुत्र कोलेकर खड़गसेनबन्धु-बांधवों सहित सम्मेद शिखरके पार्श्वनाथ भगवान का पूजन-दर्शन करने गए। (यह आपकी शरण है। हए। मंदिरके पूजारीने ध्यान लगाने | के बाद कहा। भगवान पार्श्वनाथकेयक्षने) कहा है कि यहबालक दीर्घायुहोगा। यमनेकहा कि भगवान पार्श्वनाथकाजन्म) जिसनगर में हआ उसी केनाम पर इस बालकका नाम रखो। M Ag (कितना सौभाग्य शाली है। यहबालक! 18 वर्षकी अगर में एक जणवाडेतकपा 3ध्यमकेविएता 12. कुशाग्र बुद्धि होने के कारण इससे अधिक ज्ञानकी लिखना- पढ़ना जल्दी सीखगए इच्छा नहीं थी। 1595 ई. में जबबनारसीदास नौवर्ष के थे। रवैराबाद के कल्याणमल ताम्बी की पुत्रीकेसाथ इनका विवाह | तय हुआ। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकवर्ष पश्चातहीजौनपुर में | | भीषण अकाल पड़ा। खाद्यपदार्थो का अभाव होगया। मनुष्यों की बड़ी दुर्दशा थी। FF. SITE FILM NINNR (3 दर्भिक्ष काजोर कहकमहोने पर बनारसीदास VIATV का विवाह सम्पन्न हुआ।। जिस दिन विवाहकर घरलौटे उसी | | बनारसीदास की पत्नीका अधिकांश जौनपुर में जौहरियों पर दिन परिवार में एक जन्म हुआ तो समय मायके में ही बीतताथा। आई। एक दुखद मृत्यु भी हुई। नगरपालनवाब किलिजखान। तेलतो तिलों से ही निकलेगा जौहरियो परकोड़े अकाल का असर हम पर भी मुझे बड़ी रकम चाहिए। बरसाए गए। (पड़ाहै हुजूर।हमइतना धन। Baat नही देसकते। Hit सहाय Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठीक है। अभी भयभीत जौहरी जौनपुर छोड़ कर बनारसीदास के पिताखड़गसेन सकदम्ब इन्हें जाने दो। विभिन्न दिशाओं में भाग गए। मानिकपुर के निकट शाहजादपुर गए। जापान इतनी विपत्ति पर खड़गसेन एकव्यवसायी करमचन्दमाहर इससमय अन्तराल में बनारसीदासने बच्चों की तरह रोनेलगे। ने आश्रय दिया। पण्डित देवी प्रसाद से अनेकार्थ नामर माला 47 ज्योतिषशास्त्र, अलंकार अध्यात्म के प्रखर पण्डित मुनि शाहजादपुर में रहते हुए बनारसीदास तथा कोकशास्त्र आदि का भानुचंदसे जैनधर्म के मूल- अध्ययन-मनन के साथ साथ व्यापार अध्ययन किया। ग्रन्थ पढने लगे। मेंभीरुचि लेते थे। वातावरणठीक होने पर इनका परिवार जौनपुर वापस आगया। युवाहोते बनारसीदास के कईश्यहोगए थे। इनका लखन कार्य भी प्रारंभ हो चुका था। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनकी रुचि दिन प्रति दिन लेखन में बढ़ती गई। मनहरदोहाचौपाइयों में नवरस परकाव्य। विशेषतः सम्भोग प्रधान वर्णन। बनारसीदास 'आशिकी' मैं तुम्हारे लिए ये रत्न अहा.. अहा | वाह क्या वर्णन किया है। मे डबरहे थे। पिताजी की नजर बचाकरलाल मोहिनीका रूपसाकार कर दियाहै चुराकर लाया हं। dिeamrill प्रेम-वासना में लिप्त,बनारसीदासका असंयमित जीवन लगभग दोवर्षचला उम्रतो केवल 5वर्वथी लेकिन शायद जल्दीजवानहोगए थे। उन्हें पता नहीं था। कुसंगति और || बनारसीदास, पत्नी की विदा| वही रोगाक्रांत होगए। कुव्यसनी के कारण उन्हें गर्मी । कराने खैराबाद गए। या उपदंश रोगलग गया था। क्याबातहै-स्वामी? (आह! टीटीटी Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शरीर में असंख्य दुींधित प्यावहोगए । बाल झड़ने बनारसीदास की पत्नी और सासही लगे। इतने कुरूप होगए कि लोग दूर रहने लगे। उनकी धोडी-बहत देखभाल करती थीं। जापावालाकार यह मेरे पापों का 3000. फल है। कोई फायदा || एकनाईवैद्य मैं इलाजकरुंगा। इन्हें भुनाचना और छः मास पश्चात बनारसी नहीं होरहाथा। नेदेखा। बिना नमक का भोजनदेना होगा। दास रोगमुक्त हो सके। (आह..आह! (नाई महाराज, आपने मुझे नया जीवन दिया है। आपठीक घरलौटने के पश्चात वे फिर पहले जैसा असंयमित होगए,मेरी जीवन बिताने लगे। मेहनत सफल हो > गई। 3299294 आत्मीयजनों प्रेम का व्यसनछोड़ दो।ज्ञानार्जन ब्राह्मण ने समझाया चारणों का कार्य है। व्यापारी केलड़के हो व्यापार में मन लगाओ। पत्नी के रहते भी विषय-सेवन, फैशन पुरस्ती और आवारागदी में कोई कमी नहीं आई थी। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक पढ़ने-लिखनेवालो गुरुजनों की बातों का को भीख मांगनी पड़ती है। बनारसीदास पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। सन 1604६. एक पुत्री हुई पर कुछ दिनों में ही उसका देहांत होगया। ल्यवान पत्थरों SAMका व्यापारकरते ये (लीगभी शुष्क पत्थर (होगए है। बनारसीदास की कोई भी संतान अधिक दिन जीवित नहीं रही। अपनी दुष्पवृत्तियों के कारण वह शायद उनके यौन-रोग के कारण ही ऐसा हुआ होगा। पुनः बीमार पड़ गए। बैद्य की राय से 20 दिनों तक रोटी .....मुझे मुझे खाने को चाहे मतदो, किन्तु बनारसी दास को भोजन नहीं रोटी खिलाओ। केवल रोटी मेरी आँखों के सम्मुख दिया गया। रखदो। 10 रेसे तो मैं रोटी के बारे में सोच सोच कर ही पागल हो जाउंगा। नहीं। ऐसी हालत में रोटी जहर है। आधा सेरवजनकी दो बनारसीदासने दोनों रात को जबसब (मै चाहेमरंया जियूस मोटी रोटियां उन्हेंदी रोटियां तकिए के नीचे | सोरहे थे। (इनरोटियों कोजरूर गई। रख ली। प्रवाऊंगा। (लीजिए, खाइऐगा) बिल्कुल नहीं। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आश्चर्य, सबेरे ठीकहोगए थे।। क्या..दो मोटी शेटियो ने तुम्हें ठीक M कर दिया। आर्थिक दृष्टि से घर में व्यापार भी अस्थिरता थी। बनारसीदास स्क्रतरहका बहुत चिन्तित रहते थे। (जुआ है। ००००० लाभप्रशुराम WAM एक सन्यासीसे बच्चा,मैं एक ऐसा मंत्र...प्रचुर धनाअट निष्ठालेकर करूंगा भेट हसा। जानता हैं जिसे नियमित प्राप्त होगा। गापनायब्गस मत्र योगीराज जपने से..... काजाप करनाहोगा। एकवर्ष पश्चात प्रतिदिन अपने । | बनारसीदास ने एकवर्ष मंत्रके जाप से मोहरें मैं मूर्ख। द्वार पर स्क सोने की मोहर पाओगे तक मंत्रकाचुपचापजापकिया कहां मिलनेवाली थी। बना। कभी घर में कभी गोमती के एकान्त तट पर। कद दिनों बाद एक और यह शंख,भगवान महादेवको योगी मिला। प्रतिरूप है।इसकी नित्य..., पूजाकरोगे तो शिवपुरी मिलेगा सारी मनोकामना पूरी होगी। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनारसीदास अष्टद्रव्य से गुप्तरूप सें शिव और उनके शंख की पूजा करने लगे। शिव.. शिव.. पिता की अनुपस्थिति में बनारसीदास, अभी की बन आई नहीं जाना है। मां मैं बनारस जाऊंगा बनारसीदास की प्रतिज्ञा के छ: माह बाद कार्तिक पूर्णिमा आई । बनारसी दास ने भक्तिभाव से शिव की पूजा की। सन् 1604 ई0 | बनारसीदास के पिता खड़गसेन विशाल संघ के साथ सम्मेद शिखर की यात्रा पर गए । आचरण और भोजनादि में भी पूर्ण संयम रखते। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब तक बनारस नहीं जाऊंगा, दूध, दही, घी, चावल आदि का सेवन नहीं करूंगा । तीर्थ यात्रियों के साथ बनारसीदास गंगा स्नान करने गए। 9. भी बनारस चले । O 'मैंने जिनजिन वस्तुओं को छोड़ने की प्रतिज्ञा की थी, उन्हें ही चढ़ा रहा हूं! अजीब हठी है यह । बनारस में भी कंचनकामिनी को नहीं भूले थे। जौनपुर के जौहरी हो न ? Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्-1605ई. बनारसीदास बादशाह अकबर अरेहमारे आका सम्राट अकबरका) बनारससे जौनपुर लौट आए का इन्तकाल होगया मरगएरेदेहांत होगया | थे तभी....T LE बनारसीदास थरथर कांपने लगे। अकबरके देहांतकीखबर | (इनका रक्त बहनारोको। सुनकर बनारसीदास सीढ़ियों सेलुढ़क पड़े। (हे भगवान) अकबरकी मृत्युसेसारा नगर आतंकित होठा था। हि भगवान या अल्लाह SA 110. आ.आहा सोना-चांदी सब छिपालो। आगरा से यह खबर अनिकेबाद ..नूरुद्दीनजहांगीरने पदवी धारण की है, अराजकता फैलनेवाली है कि राजधानी में शांति है और... लोगों में व्याप्त आतंक खत्म हआ। सेठजी, अब गोमती पारकर भागने की जरूरत नहीं। संकट टल गया। TAB A मैं अब शिवरूपी शंखकी) जानहीं करूंगा। बनारसीदास मै शिव का अनन्य । सोच रहे थे। भक्त और उपासक था। (किन्तु मैं सीढीसे गिर (कर चायल हुआ तो (उन्होंने रक्षानहीं की।) Ja RROMAN Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिन गोमती के पुल पर । बनारसी ने नारी सौन्दर्य का क्या खूब वर्णन किया है। AA 14 बनारसी, तुमने तो प्रेम भरी कविताओं का नवरस ग्रन्थ, रच डाला है. L मैंने मिथ्या सौन्दर्य का पूरा) (इसके पन्ने गोमती के "वक्ष में समा जाएं यही ठीक है । ग्रन्थ ही रच डाला है। हाय! अब तो उस पांडुलिपि मैं अब ऐसी को समेटना असंभव है। रचनाएं नहीं करूंगा। नवरस ग्रन्थ के पन्ने नदी में फेंक दिए ! . इस मनोरम स्थान पर उनका, रसास्वादन कराओ। बनारसीदास बात- व्यवहार में | एक सज्जैन हो उठे थे। (मैं आपको प्रणाम करता हूं। 11. 'अरे..अरे! यह क्या किया। . अब अपना मन नैतिक और धार्मिक चिन्तन में लगाऊंगा। उनकी चरित्रहीनता से जो लोग उन्हें धिक्कारते थे वे अब प्रशंसा करने लगे। 'अरे, बनारसी दास तो एक दम बदल गया है। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खडगसेन इन्हें व्यवसाय के लिए इन रत्नों और वस्तुओं कोलेकर यथासंभव अधिक आगरा भेजने की तैयारी करने तुम्हें पूरी जिम्मेदारी से जाना है। लाभ प्राप्त करना। लगे। इटावा पहुंचे तोआकाश मूसलाधार पानी बरसने मेघाच्छन्न हो उठा था। लगा। घनघोर वर्षी में बनारसीदाससहित सब आश्रयकेलिए इधर-उधर दौडे। INITAMINOWN C कोई इन्हें आश्रय देने को तेज ठंढ ,कीचड़, अंधेरा... नगर प्रवेशद्वार पर एक झोपड़ी थी तयारनहीं था। बनारसीदास की हालत दयनीय थी उसमें कुछ पहरेदार बैठे थे। सरछपानेकी जगह नहीं मिली तो मैं मरजाउंगा। भागजाओ। दयाकरिए।हम वणिक है। रात भरके लिए आश्रय खोज रहे है। नगर में कहीं जगह नहीं मिली। TU हम पहरेदार यहां सेजा रहे है। ड़ीका मालिक आएतो उससे - विनती कर लेना। IIMMIA Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह मेरी झोपड़ी है। रोज रात को मैं यहां सोता अंधेरा,ठंट,वर्षी देखकर ठहरो, तुमलोग बेसहारा हं। निकलो बाहर नहीं तो चाबुक मार मारकर उसेदया आगई। और भले दिखते हो। बाहर करूंगा। ALTIMES झोपड़ी का मालिक आया। मैं तो खाट पर सोउंगा, तुम लोग चाहोतो किसी तरह खाट केनीचे टाट पर सो सकते हो। A रात बीती। दूसरे दिन बनारसीदास आगरा पहुंचे। पक्का व्यवसायीन होने के कारण मोती,माणिक,नगीने कहीं। भारण- पायजामे के उन्हें माल बेचने में भारी ॥खोगण्या गिर गए। नेफे में तो । नुकसान हुआ। रखे थे। 13. इतना अफसोस हुआ कि बनारसीदास बीमार पड़ गए। य CS cिh बनारसीदास के माता-पिता उस कुपूतने तो को व्यापार की क्षति का पताचला। डबा ही दिया। एक माह तक बीमार रहे। अब मै समझा वणिक का प्राण धन में क्यों रहता है। Thurta Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगरा में बनारसीदासके || फिर घर सेबाहर बनारसीदास-संध्या को अपने घर पर पासजो कुहबचाथाउसे || निकलना बंद हो । इकठ्ठा हुए दस-बारह आदमियों को... बेचकर खा गए। गया। ...मधुमालती और मृगावती - प्रेमगाथा गाकर सुनाते थे। श्रोताओं में कचौड़ी बेचने वाह महाशय! बनारसी दास अपने श्रद्धालु श्रीता वाला एक हलवाई था। आनंद आगया।MAIहलवाई सेकचौडी उधार लेकर खाते थे। या। हलवाई सकारले रहाहूं।। आज भी एकसेर URLA तौल देना) बसस्सेहीकचौड़ियां रखाकर | एक माहतक उधार खाने हलवाई बन्धु, आप मेरे यहां | दिन बिता रहे थे। केबादइनसेनहीं रहागया। मैं आपको अपनी ज्ञान की बाते व शामको A हालतबताता हूं। गायनसुनने आते प्वर पर सुनने रहे है पर मेरी जरूर आना। हालत नहीं जानते होंगे। बनारसी दासने इस तरह मैं तुमसे कचौरी आप मले है।जबहो सके इसी तरह छ: माह बीत गए हलवाईकोबताया। उधारलेकर दिन बिता उधारचुकताकर दीजिएगा। रहाहूं। मैं किसी से जिक्र नहीं करूंगाS यहलवाईबंधुने 120रु०तक उधार । देने को कहा है। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनारसीदासके श्वसर पक्ष के धर्मदास की भागीदारी में जितना कमाया इन्होंने फिर व्यवसाय । हलवाईका 14रु०का उतना खर्च हो रिश्तेदार ताराचंद तांबी इन्हे शुरू किया। गया। | उधार चुका दिया। | अपने घर लेगए। मरान मैने कहाथा (आप भले आदमी है। दीवर्षका हाड़-तोड़ श्रम व्यर्थ गया। स्ककानी कौडी भीनहीं बची। रेउस पोटली में) आठ मोती।...हे भगवान, क्या है?.00%इंबतेको सहारा मिला। परफा निकसीचोची सागरमथा। भईहींगवालकीकया। अकरी मसक्कत गई अकाथ कौड़ीएकनलागी हाथ। M ANGIX - SAM बनारसीदास अपनी ससुराल सैराबाद पहुंचे। पासके ये २०००रखो। मासे की भी मांगती हैं। मांनेचुपचापये २००स०दिए है। आगराजाकर फिरसे व्यापार शुरु करो। मुझमें आत्म पत्नी सेसारी आपबीतीकही। बनारसीदासनए उत्साह से कार्य करने लगे। विश्वास फिर लौट आया है। | व्यापार के लिए वस्तुएं खरीदने और... उन्हें विक्रय के लिए तैयार (इनकपड़ों को अच्छी तरह करवाने में धोना। आगरा में बेचनाहै। लग गए। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुनः आगरा में व्यवसाय कपड़े के व्यापार में किया। शुरू घाटा हुआ। यह कपड़ा देखिए... घटिया है। बेकार ही इसे धुलवा कर और ढो कर ले आए। अब समझ में आता है कि रत्नजवाहरातों के धन्धे में ही लाभ संभव है। मैं तो दिवालिया हो गया हूं। न हाथ में पैसा, न ठौरठिकाना। 16 शाहजाद पुर से एक हमाल करके तीनो पैदल ही चले । BAALA व्यापार में जो थोड़ा लाभ हुआ वह खर्च हो गया और बनारसी दास फिर फक्कड़ होगए। जमा - खर्च बराबर । मित्र, तुम मेरे भाई की तरह हो । मेरे घर पर ही रहो। दो रचनाएं अजितनाथ के छंद' और 'नाममाला' लिखने में व्यस्त हो गए। कैसी तेज चांदनी खिली है।) सबेरा होने में ज्यादा देर नहीं हो बनारसीदास अपने मित्र नरोत्तमदास से मिले । नरोत्तम दास, उनके. 'श्वसुर और बनारसीदास काम के सिलसिले में पटना चले । चांदनी के भ्रम में जल्दी निकल पड़े थे । अंधेरा गहराया। रास्ता भूल कर घने जंगल में पहुंच गए। (रास्ता भूल गये। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमाल (कुली) मतो इसजंगल में अरे ठहर । ठहर। अब हम क्याकरें? तीन हिस्सा करके, गठरी फेंक कर नहीं रुकंगा। . भाग गया दष्टगठरी तो भारी है। ले चलें भागा। AKAL P आधी रात का समय था। बनारसीदास, नरोत्तमव उनके श्वसुर रोते-कलपते जंगल मे आगे बढ़े जा रहे थे। जंगल में डाकुओं का अड्डा । कौन है वहां? अरे बापरे डाकू!) प्राण AD | डाक सरदारको अपनी ओर आते ई सावास्यमिदं सर्वमयत्किंजगत्याम पावलगत . देखकर बनारसीदास को एकयक्ति सझी। जगत......बाह्मणका आशीर्वाद है। पाण्डताअपिता) हमारे गुरु है। श...डरनामत। (मेरी कुटिया आपलोगजंगल में हमरास्ता मलकोई बातनहीं रात्रि विश्राम करलीजिए। पावत्र काजोलनी रात.को...... ग 'राजमान | NIA कल हम आपको रास्ता बता देगे। चन्यवाद श्री मान Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरेबापरे! मेरीR ATE छातीतोप डाकुओको जरा भी ...हमब्राह्मण नहीं,व्यापारीहे। रात के अंधेरे में उन्हें पता नहीं संदेह होगया कि... तो काट डालेंगे। कर रही है। चला पर अबजल्दी सेब्राह्मण बनने का उपाय करें। MUS बनारसीदास ने सूत निकालकर गीली मिट्टी से तीनोंने भय से कांपते सरदार अपने अनुचरों तीनजने बनाया। बडेसे तिलक बनाए। किसी तरह सहित दर्शन करना चाहते रात बिताई।। ब्राह्मण बिना अब ठीक हा जने कैसा दिखेगा। त्वमेव माता च पिता त्वमेव V... मेरा आशीर्वाद त्वमेवबंधुश्च सखा त्वमेव..... आइए में जंगलसे बाहर निकलनेका रास्ता दिखाद किधर जानाजफतेपुर ।....हम चाहेंगे? फतहपुर जाना है। (अच्छाचलता दीर्घजीवीभव उनवक्षों के उसपार) (फतेपूर है। हूं Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जान बची। किसी फतहपुर,इलाहाबाद होतेहुए व्यापारके सिलसिले जन्मका पुण्य काम बनारसीदास जौनपुर लौटे। में बनारस गए। आया। इलाहाबाद में मेरी आपबीती सुनकर पिताजीको गशआ गयाधान भगवान पार्श्वनाथ मंदिर में कछ प्रतिज्ञाएं की। में कुहवस्तुओं रात का त्याग करूंगा। बनारस में नवजात शिशु दुखद सूचना के साथ पत्नी का मिलींदेड देहान्त होगया। Aal दखद समाचार के साथ पुनर्विवाह मेरे श्वसुरने अपनी का प्रस्ताव भी था। दूसरी कन्या का विवाह मुझसे तय कर दिया है। चिट्ठी देखें (दोनो सूचनाएं एक पत्र में। मेरी स्थिति तो लुहार-संडासी बनारसी दासनेनरोत्तमदासके जौनपुर, वाराणसी और की तरह होगई है जो साथ मिलकर अपने व्यवसाय पटना इनका व्यापार क्षेत्रथा। अग्नि में और एकबारजलमें। में मन लगाया। ...और व्यापारीको लोग समझते है। जाती है। 'विभिन्न मुहल्लों में घूमतेघूम आसानी से धनकमालेता है। मैं तो पस्त हो गया। जौनपुर का नवाब अमीरचीनी किलिज | खान बनारसी दास पर कृपाल था। मेवी ओर से यह सिरोपा कुबूल करो। | किलिज खान ने बनारसीदास से 'नाममाला', छन्दकोश' और श्रुतबोध' पढा। भुभान अल्लाहा इल्महासिल) करना तो खुदा की इबादत है। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | सन् 1618 ई० में दुर्दात अमीर आधानूर जौनपुर के शासक के रूप में आया। सर्वत्र आतंक व्याप्त गया। धनिक लोग घर छोड़ कर भागने लगे। क्या मुसीबत आई है! पूछताछ शुरू हुई। मुझे पैसा चाहिए और इन तिजारती लोगों को निचोड़ने से ही पैसा मिलेगा। यह माहेश्वरी और मैं दोनों भद्र नागरिक हैं। तुम दोनो कौन हम मधुरावासी हो ? (ब्राह्मण हैं हुजूर | अमीर आधानूर ने जौहरियों, सर्राको बनियों आदि को बहुत सताया । बनारसी दास भी कुछ के साथ भाग रहे थे । इस बरी शहर में आप दोनों को कोई जानता है ? इन्हें और कोड़े लगाओ तब जवाहरात उगलेंगे। 'लोगों ठहरो ठगों ! भाग कहां) रहे हो ? दया दया तुम ठगों के लिए हम शूलियां भी लाए हैं। (और तुम? और तुम? मैं बनारसीदास जौहरी हूं | जौनपुर में मेरा व्यवसाय है ! मेरे छोटे भाई के साले यहां रहते हैं। पहचान करा सकता हूं। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "साहू, आपको जो कष्ट मथुरावासी ब्राह्मण हुआ उसके लिए क्षमाकरें । चिंतित थे । पहचान होने के बाद | हम दोनो कंगाल हो गए हमें कुछ रुपए दो । पुनः यात्रा शुरू हुई। यमुना नदी के तट पर पहुंचे। बनारसी दास और माहेश्वरी ने ब्राह्मण को कुछ रुपए दिए। 21 आपने हमें आत्मघात से बचा लिया। आपकी जान हमारे रुपए दिन गए। हमारे पास कुछ नहीं बचा। बच गई यही बहुत है । नहीं तो यमुना में डूब कर प्राण दे देंगे। ( आज भी उन्हें फुर्सत कहां है। साह मोथिया के पास जाते बनारसी दास को एक सप्ताह होगया लेकिन उनका काम नहीं बन रहा था। 'अच्छी मुसीबत है। 40,6 (हाय.. हाय.) हिसाब-किताब खत्म करने के लिए साहू सबल सिंह मोथिया के पास गए पर वे तो अपने वैभव में मस्त थे । । ये ब्राह्मण ( तो रो रहे हैं। अंत में अंगा शाह के प्रयत्न से बहियों पर हस्ताक्षर हुआ। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साझेदारी के बंधन से मुक्त होकर बनारसी दास को प्रसन्नता हुई। (आह, चिन्ता मिटी | Boo आगरा में पहला प्लेग फैला। गांठ रोग बनारसी दास ने भी आगरा छोड़ कर एक ग्राम में आश्रय लिया। उन्होंने जैन साहित्य का अधिकाधिक अध्ययन किया। ये दुर्लभमूल पांडुलिपियां बनारसीदास का मन विरक्त होने लगा । कोई नई बात नहीं है। मान जाओ। लोगों के आग्रह से उन्होंने तीसरी शादी की। मेरी भी राय, है । इसका कोई उपचार फैल रहा है। लोग नहीं है। शहर छोड़ धड़ाधड़ मर रहे हैं। कर भागो । आगरा से महामारी खत्म हुई तो बनारसीदास तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े। उनका पुनर्विवाह हुआ किन्तु संतानोत्पत्ति के बाद पुन: पत्नी, पुत्र का देहांत हो गया 22 उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया जब 'समयसार ' पढ़ा । 'अब दिगम्बर जैन धर्म में मेरी आस्था दृढ़ हो गई है। Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनारसीदास का सारा समय आध्यात्म-चर्चा || तीसरी पत्नी भी नहीं रही जैसे रखन, अनवरत | और लेखन में व्यतीत होने लगा। सारा पारिवारिक बंधनहीटटगया। लखन चलतारहा | 'सक्ति रत्नमाला', शिव-पच्चीसी, राम-रावण अन्तर' | सबसे महत्वपूर्ण रचना है 'समयसार सहसआठोत्तर नाम' आदि बनारसीदास की उस समय | नाटक '। इसमें 727 पद है। की उल्लेखनीय रचनाएं है। बनारसीदास ने 55 वर्ष की आयु में अपनी आत्मकथा 'अकयानक 'लिखी। (मनुष्य की आयु 110 वर्ष की? होनी चाहिए। इसमें मेरी, आयु के 55 वर्षों का वृतांत है। JO000° 23 एकबार उनकी भेंट / मैं रामचरित मानस की) महाकवि तुलसीदास यह प्रति आपको भेंट सेहुई थी। करता हूं। मेश (सौभाग्यहै भक्त-शिरो मणि। TAN ग पीटामके पतिवादसल्य भावसे || कक पंक्तियां लिखकर | सन-1643ई। अचानक तुलसीदासने भगवान पार्श्वनाथ पर... उन्हें भेंट किया था। गलारुंधजाने सेवाक शक्ति चली गई। एक और प्रेम,आदर्श,वीरता) और दूसरी ओर त्याग, अहिंसा जनमानसको दोनो की आवश्यकता है। जिाहनाथपारसजगलपंकज चितचरनन जास। रिद्धिसिद्धिकमला अजर राजति भजततलसीदास // Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिस्तर पर पड़े पड़े वे ध्यान लगता है कविका प्राण माया । चिन्तन में निमग्न रहते थे। (व कुटुम्बियों में अटका हुआहै।).. । सांसारिक मोह त्यागना आसान नहीं) Vवेकहलिवना कोपती अंगुलियों से भी लेखनी से अक्षर भी चाहते हैं। बन रहे थे। 214 कविवर ने अंतिम इंद लिखा स्मृति शेष रह गई। ज्ञान कतक्का हाथ, मारि अरि मोहना। प्रगट्यो रुप स्वरूप, अनंतसुमोहना॥ जापरजै को अन्त , सत्यकर मानना। चले बनारसीदास, फेर नहिं आवना ॥ चल बनारसीदास Pawan फेरनही आवना फेरनहा समाप्त 107 बाहुबली प्रकाशन का आगामी आकषर्ण कहानकथा : महानकथा : (पूज्य कान जी स्वामी के सम्पूर्ण जीवन पर . आधारित मार्मिक चित्र कथा) मूल्य ४) रुपया आलेरब- अरिबल बसंल पिनाकन-अनन्त कुशवाहा Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20m > )