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"साहू, आपको जो कष्ट मथुरावासी ब्राह्मण हुआ उसके लिए क्षमाकरें । चिंतित थे ।
पहचान होने के बाद |
हम दोनो कंगाल हो गए हमें कुछ रुपए दो ।
पुनः यात्रा शुरू हुई। यमुना नदी के तट पर पहुंचे।
बनारसी दास और माहेश्वरी ने ब्राह्मण को कुछ रुपए दिए।
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आपने हमें आत्मघात से बचा लिया।
आपकी जान
हमारे रुपए दिन गए। हमारे पास कुछ नहीं बचा। बच गई यही बहुत है ।
नहीं तो यमुना में डूब कर प्राण दे देंगे।
( आज भी उन्हें फुर्सत कहां है।
साह मोथिया के पास जाते बनारसी दास को एक सप्ताह होगया लेकिन उनका काम नहीं बन रहा था।
'अच्छी मुसीबत है।
40,6
(हाय.. हाय.)
हिसाब-किताब खत्म करने के लिए साहू सबल सिंह मोथिया के पास गए पर वे तो अपने वैभव में मस्त थे । ।
ये ब्राह्मण ( तो रो रहे हैं।
अंत में अंगा शाह के प्रयत्न से बहियों पर हस्ताक्षर हुआ।