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ठीक है। अभी भयभीत जौहरी जौनपुर छोड़ कर बनारसीदास के पिताखड़गसेन सकदम्ब इन्हें जाने दो। विभिन्न दिशाओं में भाग गए। मानिकपुर के निकट शाहजादपुर गए।
जापान
इतनी विपत्ति पर खड़गसेन एकव्यवसायी करमचन्दमाहर इससमय अन्तराल में बनारसीदासने बच्चों की तरह रोनेलगे। ने आश्रय दिया। पण्डित देवी प्रसाद से अनेकार्थ नामर
माला
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ज्योतिषशास्त्र, अलंकार अध्यात्म के प्रखर पण्डित मुनि शाहजादपुर में रहते हुए बनारसीदास तथा कोकशास्त्र आदि का भानुचंदसे जैनधर्म के मूल- अध्ययन-मनन के साथ साथ व्यापार
अध्ययन किया। ग्रन्थ पढने लगे। मेंभीरुचि लेते थे।
वातावरणठीक होने पर इनका परिवार जौनपुर वापस आगया।
युवाहोते बनारसीदास के कईश्यहोगए थे।
इनका लखन कार्य भी प्रारंभ
हो चुका था।