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प्रकाशक:
बाहबली प्रकाशन लालकोठी जयपुर-302015
मूल्य:
चार रुपया
प्रालेख: अखिल बंसल एम. ए.
कविवर बनारसीदास भक्तिकालीन हिन्दी साहित्यकारों में कविवर बनारसीदास अग्रगण्य हैं। ३अपने जीवन के 55 वर्षों के आत्मकथ्य को उन्होंने ज्यों का त्यों "अर्द्ध कथानक"
में उतारकर रख दिया। उनको इस आत्मकथा को हिन्दी साहित्य की सर्वप्रथम अात्मकथा कहलाने का गौरव प्राप्त है।
1586 ई० में जन्में इस कवि ने सम्राट अकबर का अन्तिम समय, जहांगीर का शासन काल और शाहजहां के शासन का प्रारम्भ बहत निकट से देखा था। ३ कविवर का सम्पूर्ण जीवन मौत बीमारी, अभाव, संघर्ष तथा कड़वे-मीठ अनुभव इ से परिपूर्ण था। बनारसीदास आशिकी में कई बार मिटे-बने । यहाँ तक कि ३ विदग्ध शृगार पर एक 'नवरस' ग्रन्थ ही रच डाला, किन्तु जब निर्वेद का अलख ३ उनमें सुलगा तो गोमती की धारा में अपनी उस श्रेष्ठ रचना को प्रवाहित कर दिया।
व्यापार के सिलसिले में उनके जीवन का अधिकांश समय उत्तरप्रदेश के जौनपुर व आगरा में बोता। उस समय की राजनैतिक, सामाजिक स्थिति तथा ई ब्यापारियों की कठिनाईयों का बेलौस वर्णन उनकी आत्मकथा में सन्निहित है। एक के बाद एक रोचक घटनाओं से उनका जीवन भरा हुआ था।
समयसार पढ़ने के उपरान्त दिगम्बर जैनधर्म में उनको अगाध एवं सच्ची ईश्रद्धा रही। 1636 ई० में उन्होंने समयसार नाटक की हिन्दी में पद्य की रचना
को । उनकी प्रसिद्ध के लिए यही ग्रंथ काफी है। उनकी फुटकर रचनाओं का संकलन 'बनारसी विलास' में संग्रहीत है। आगरा में उनको भेट महाकवि इतुलसीदास से भी हुई थी। जब तुलसीदास ने रामचरितमानस पर उनका अभि३ मत चाहा तो उन्होंने लिखा
बिराजै रामायण घट मांहि ।
मरमी होय मरम सो जान, मूरख जानै नाहि ॥ तुलसीदास जी ने भो भ० पार्श्वनाथ की स्तुति में कुछ छन्द बनारसीदास को लिखकर दिए उनमें से एक है
जिहिनाथ पारस जुगल पंकज, चित्त चरनन जास।
रिद्धि-सिद्धि कमला अजर, राजति भजत तुलसीदास ।। इस वर्ष कविवर बनारसीदासजी का 400 वाँ जन्म दिवस उत्साह पूर्वक भर में मनाया जा रहा है अतः उक्त प्रसंग पर कविवर के जीवन की महत्व३ पूर्ण घटनाओं पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से यह चित्रकथा प्रकाशित की जा
रही है। इसका आलेख समन्वयवाणी के यशस्वी सम्पादक श्री अखिल बंसल ने ३ तैयार किया है तथा चित्रों से सजाया है बालहंस के सम्पादक श्री अनन्त कुशवाह
ने । वैसे तो राजस्थान के अग्रणी पत्र राजस्थान पत्रिका में इसका प्रकाशन क्रमश हो चुका है, परन्तु देशभर में प्रचार-प्रसार की दृष्टि से इसका प्रकाशन पृथक से किया जा रहा है । आशा है यह कृति उपयोगी सिद्ध होगी।
-श्रीमती शैल, एम. ए.
प्रकाशिका
चित्रांकन : अनन्त कुशवाहा
प्रथम संस्करण : 5200
14 नवम्बर, 1987