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बिस्तर पर पड़े पड़े वे ध्यान लगता है कविका प्राण माया । चिन्तन में निमग्न रहते थे। (व कुटुम्बियों में अटका हुआहै।)..
। सांसारिक मोह त्यागना आसान नहीं)
Vवेकहलिवना
कोपती अंगुलियों से भी लेखनी से अक्षर
भी
चाहते हैं।
बन रहे थे।
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कविवर ने अंतिम इंद लिखा
स्मृति शेष रह गई।
ज्ञान कतक्का हाथ, मारि अरि मोहना। प्रगट्यो रुप स्वरूप, अनंतसुमोहना॥ जापरजै को अन्त , सत्यकर मानना। चले बनारसीदास, फेर नहिं आवना ॥
चल बनारसीदास Pawan फेरनही आवना
फेरनहा
समाप्त
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बाहुबली प्रकाशन का आगामी आकषर्ण
कहानकथा : महानकथा : (पूज्य कान जी स्वामी के सम्पूर्ण जीवन पर .
आधारित मार्मिक चित्र कथा)
मूल्य ४) रुपया आलेरब- अरिबल बसंल पिनाकन-अनन्त कुशवाहा