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| सन् 1618 ई० में दुर्दात अमीर आधानूर जौनपुर के शासक के रूप में आया।
सर्वत्र आतंक व्याप्त गया। धनिक लोग घर छोड़ कर भागने लगे। क्या मुसीबत आई है!
पूछताछ शुरू हुई।
मुझे पैसा चाहिए और इन तिजारती लोगों को निचोड़ने से ही पैसा मिलेगा।
यह माहेश्वरी और मैं दोनों भद्र नागरिक हैं।
तुम दोनो कौन हम मधुरावासी हो ? (ब्राह्मण हैं हुजूर
| अमीर आधानूर ने जौहरियों, सर्राको बनियों आदि को बहुत सताया ।
बनारसी दास भी कुछ के साथ भाग रहे थे ।
इस बरी शहर में आप दोनों को कोई जानता है ?
इन्हें और कोड़े लगाओ तब जवाहरात उगलेंगे।
'लोगों
ठहरो ठगों ! भाग कहां) रहे हो ?
दया
दया
तुम ठगों के लिए हम शूलियां भी लाए हैं।
(और तुम?
और तुम? मैं बनारसीदास जौहरी हूं | जौनपुर में मेरा व्यवसाय है !
मेरे छोटे भाई के साले यहां रहते हैं। पहचान करा सकता हूं।