Book Title: Kavivar Banarasidas
Author(s): Akhil Bansal
Publisher: Bahubali Prakashan

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Page 21
________________ जान बची। किसी फतहपुर,इलाहाबाद होतेहुए व्यापारके सिलसिले जन्मका पुण्य काम बनारसीदास जौनपुर लौटे। में बनारस गए। आया। इलाहाबाद में मेरी आपबीती सुनकर पिताजीको गशआ गयाधान भगवान पार्श्वनाथ मंदिर में कछ प्रतिज्ञाएं की। में कुहवस्तुओं रात का त्याग करूंगा। बनारस में नवजात शिशु दुखद सूचना के साथ पत्नी का मिलींदेड देहान्त होगया। Aal दखद समाचार के साथ पुनर्विवाह मेरे श्वसुरने अपनी का प्रस्ताव भी था। दूसरी कन्या का विवाह मुझसे तय कर दिया है। चिट्ठी देखें (दोनो सूचनाएं एक पत्र में। मेरी स्थिति तो लुहार-संडासी बनारसी दासनेनरोत्तमदासके जौनपुर, वाराणसी और की तरह होगई है जो साथ मिलकर अपने व्यवसाय पटना इनका व्यापार क्षेत्रथा। अग्नि में और एकबारजलमें। में मन लगाया। ...और व्यापारीको लोग समझते है। जाती है। 'विभिन्न मुहल्लों में घूमतेघूम आसानी से धनकमालेता है। मैं तो पस्त हो गया। जौनपुर का नवाब अमीरचीनी किलिज | खान बनारसी दास पर कृपाल था। मेवी ओर से यह सिरोपा कुबूल करो। | किलिज खान ने बनारसीदास से 'नाममाला', छन्दकोश' और श्रुतबोध' पढा। भुभान अल्लाहा इल्महासिल) करना तो खुदा की इबादत है।

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