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यह मेरी झोपड़ी है। रोज रात को मैं यहां सोता अंधेरा,ठंट,वर्षी देखकर ठहरो, तुमलोग बेसहारा हं। निकलो बाहर नहीं तो चाबुक मार मारकर उसेदया आगई।
और भले दिखते हो। बाहर करूंगा।
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झोपड़ी का मालिक आया।
मैं तो खाट पर सोउंगा, तुम लोग चाहोतो किसी तरह खाट केनीचे टाट पर सो सकते हो। A रात बीती।
दूसरे दिन बनारसीदास आगरा पहुंचे।
पक्का व्यवसायीन होने के कारण
मोती,माणिक,नगीने कहीं।
भारण- पायजामे के उन्हें माल बेचने में भारी
॥खोगण्या गिर गए। नेफे में तो । नुकसान हुआ।
रखे थे।
13. इतना अफसोस हुआ कि बनारसीदास बीमार
पड़ गए।
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बनारसीदास के माता-पिता उस कुपूतने तो को व्यापार की क्षति का पताचला। डबा ही दिया।
एक माह तक बीमार रहे। अब मै समझा वणिक का प्राण धन में क्यों रहता है।
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