Book Title: Kavivar Banarasidas
Author(s): Akhil Bansal
Publisher: Bahubali Prakashan

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Page 16
________________ आगरा में बनारसीदासके || फिर घर सेबाहर बनारसीदास-संध्या को अपने घर पर पासजो कुहबचाथाउसे || निकलना बंद हो । इकठ्ठा हुए दस-बारह आदमियों को... बेचकर खा गए। गया। ...मधुमालती और मृगावती - प्रेमगाथा गाकर सुनाते थे। श्रोताओं में कचौड़ी बेचने वाह महाशय! बनारसी दास अपने श्रद्धालु श्रीता वाला एक हलवाई था। आनंद आगया।MAIहलवाई सेकचौडी उधार लेकर खाते थे। या। हलवाई सकारले रहाहूं।। आज भी एकसेर URLA तौल देना) बसस्सेहीकचौड़ियां रखाकर | एक माहतक उधार खाने हलवाई बन्धु, आप मेरे यहां | दिन बिता रहे थे। केबादइनसेनहीं रहागया। मैं आपको अपनी ज्ञान की बाते व शामको A हालतबताता हूं। गायनसुनने आते प्वर पर सुनने रहे है पर मेरी जरूर आना। हालत नहीं जानते होंगे। बनारसी दासने इस तरह मैं तुमसे कचौरी आप मले है।जबहो सके इसी तरह छ: माह बीत गए हलवाईकोबताया। उधारलेकर दिन बिता उधारचुकताकर दीजिएगा। रहाहूं। मैं किसी से जिक्र नहीं करूंगाS यहलवाईबंधुने 120रु०तक उधार । देने को कहा है।

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