Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad

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Page 251
________________ २४६ संजोयणाए चउरुवसमित्त संजोयइत्तु अप्पद्धं । छावट्ठिदुर्ग पालिय अहापवत्तस्त अंतम्मि ॥११०॥ हस्सं कालं बंधिय विरओ याहारमविरइं गन्तुं । चिरउव्वलणे थोवो तित्थं बन्धालिगापरयो ॥१११॥ वेउविक्कारसगं उठवलियं बन्धिऊण अप्पद्धं । जेट्टहितिनारयाओ उध्वट्टित्ता अबन्धित्तु ॥११२।। थावरगसमुव्वलणे मणुदुगउच्चाण सुहुमबद्धाणं । एमेव समुव्वलणे तेजवाऊसुवगयस्स ॥ ११३ ॥ अणुवसमित्ता मोहं सायस्स असायचंतिमे बन्धे । पणतीसाए सुभाणं अपुवकरगालिगाअंते ॥११॥ तेवळं उदहिसयं गेविजाणुत्तरे अबन्धित्ता। तिरिदुग उज्जोयाइं अहापवत्तस्स अन्तम्मि ॥११५॥ इगिविगलायवथावरचउक्कमबन्धिऊण पणसीयं । अयरसयं छट्ठीए बावासयरे जहा पुव्वं ॥ ११६ ॥ दुसराइतिन्निनायासुभखगइसंघयणसंठिअपुमाणं । सम्मा जोगाणं सोलसहसरिसस्थिवेएणं ॥११७॥ समयाहि आवलीए आऊण जहन्नजोगबद्धाणं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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