Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad

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Page 276
________________ २७१ करणाय नोवसंत संकमणोवट्टणं तु दिट्ठितिगं । मोत्तण विलोमेणं परिवडइ जा पमत्तोत्ति ॥८६॥ उक्कड्डित्ता दलियं पढमठितिं कुणइ बीयठितिहिंतो। उदयाइ विसेसूणं श्रावलिउप्पि असंखगुणं ॥८७॥ जावइया गुणसेढी उदयवई तासु हीणगं परयो । उदयावलीमकाउं गुणसेढी कुणइ इयराणं ।।८८॥ संकम उदीरणाणं णस्थि विसेसो उ एत्थ पुव्वुत्तो। ज जत्थ उ वोच्छिण्णं जायं वा होइ तं तत्थ ॥८९॥ वेइजमाणसंजलण कालओ अहिअमोहगुणसेढी । पडिवत्ति कसाउदए तुल्ला सेसेहिं कम्मेहिं ॥९॥ खवगुवसामगपच्छागयाण दुगुणो तहिं बन्धो । अणुभागोऽणतगुणो असुभसुभाण विवरीयो ॥११॥ परिवाडीए पडिउं पमत्तइयरत्तणेण बहुं किच्चा। देसजई संजमं वा सासणभावं च कोइ वयइ ॥१२॥ उवसमसम्मत्तद्धा अंतो आउक्खया भवे देवो। जेण तिसु आउएसु बद्धसु न सेढिमारुहइ ॥९३॥ सेढी पडिओ तम्हा छडावली सासणो वि देवेसु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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