Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 274
________________ २६९ जं समए उवसंतं छक्कं उदयठिई तया सेसा । पुरिसे समजणावलिदुगेण बद्धं अणुवसंतं ॥ ६८ ॥ आगालेणं समगं पडिग्गहया फिडइ पुरिसवेयस्स । सोलसवासियबन्धो चरमो चरमेण उदयेण ॥ ६९ ॥ तावइ काले चिय पुरिसं उवसामए अवेदो सो । बन्धो बत्तीससमा संजलणियराण उ सहस्सं ॥७०॥ अव्वेय पढमसया कोहतिगं खाढवेइ उवसमिउं । तिसु पडिगहया एक्काए उदओ य उदीरणा बन्धो७१ फिट्टेति आवलीए सेसाए सेसयंतु पुरिससमं । एवं सेसकसाया वेयइ थिबुगेण आवलिया ॥ ७२ ॥ चरमुदयम्मि जहण्णो वन्धो दुगुणो उ होइ उवसमगे । तयणंतर पराईए चउग्गुणोन्नेसु संखगुणो ॥ ७३ ॥ लोहस्स उ पढमठि बीयठिईओ उ. कुणइ तिविभागं । दोसु दलनिक्खेव तइओ पुण किट्टिवेया ॥७४॥ संताणि वज्झमाणगसरूवओ फड्डगाणि जं कुणइ । सा अस्सकपणकरणद्ध मज्झिमा किट्टिकरणद्धा ॥७५॥ अपुव्वविसोही अणुभागोणणविभयणं किट्टी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302