Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
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बन्धोदयाण विरमे जं संत बुभइ अण्णस्थ ॥४४॥ सत्तावीसे पल्लासंखसो पोग्गलद्धछठवीसे । घे छावही अडचउवीसिगवीसे उ तित्तीसा ॥४५॥ अंतमुहुत्ता उ ठिई तमेव दुहयोविसेससंताणं । होइ अणाइ अणंतं अगाइसंतं च छठवीसा ॥४६॥ अप्पजत्तग जाई पजत्तगईहिं पेरिआ बहुसो । बन्ध उदयं च उति सेसपगईओ नामस्स ॥४७|| उदयप्पत्ताणुदओ पएसयो अणुवसंतपगईणं । अणुभागोदय निच्चोदयाण सेसाण भइयव्यो॥४८॥ अथिरासुभचउरंस परघाइदुगं तसाइधुवबन्धी। अजसपणिवीवि उपाहारगसुखगइसुरगइया ॥४९॥ बन्धइ तिस्थनिमित्ता मणुउरलदुरिसभदेवजोगायो। नो सुहमतिगेणजसं नो अजसथिरासुभाहारे ॥५०॥ अप्पमत्तगवन्धं दूसरपरघायसालपजत्तं । तस अपसस्था खगई घेउव्वं नरयतिगइहेज ॥५१॥ हुंडोरालं धुवबन्धिणीओ अथिराइ दूसरविणा। गइआणुपुठियजाई बायरपत्तयअपज्जत्ते ॥५२॥
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