Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad

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Page 275
________________ (२७०) पढमसमयम्मि रसफडडवग्गणाणतभागसमा ॥७६॥ सव्वजहण्णगफड्डग अणंतगुणहीणियाउ तो रसओ पइसमयमसंखसो थाइमसमयाउ जावंतो ॥७७॥ अणुसमयमसंखगुणं दलियमणतंसयो उ अणुभागो सव्वेसु मंदरसमाइयाण दलियं विसेसूणं :७८॥ आइमसमयकयाण मंदाईणं रसो अणंतगुणो। सव्वुक्कस्सरसा वि हु उवरिमसमयस्सणतंसे ॥७९॥ किट्टीकरणद्धाए तिसु आवलियासु समयहीणासु । न पडिग्गहया दोण्हवि सहाणे उवसमिति ॥८॥ लोभस्स अणुवसंत किट्टी उदयावली य पुव्वुत्तं । बायरगुणेण समगं दोण्ह वि लोभा समुवसंता । ८१ सेसद्ध तणुरागो ताओ आकड्डियाओ पढमठिई। वज्जिय असंखभागं हेळुवरिमुदीरए सेसा ॥ ८२॥ गेण्हंतो य मुयंतो असंखभागं तु चरिमसमयम्मि । उवसामिय बीयठिई उवसंतं लभइ गुणठाणं ॥८३॥ थन्तोमुहुत्तमेत्तं तस्स वि संखेजभागतुल्लाओ। गुणसेढी सव्वद्ध तुल्ला य पएसकालेहिं ॥ ८४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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