Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 272
________________ ( २६७ ) ठितिखंडं उक्करसं पि तस्स पल्लस्स संखतमभागं । ठितिखंड बहुसहस्से सेक्वेक्कं जं भणिस्सामो ॥ ५१ करणस्स संखभागे सेसे असण्णिमाइयाण समो । बन्धो कमेग पल्लं वी सगतीसाण उ दिवङ्कं ॥ ५२॥ मोहस्त दोणि पल्ला संते वि हु एवमेव अप्पबहू | परियमित्तंम्म बन्धे अण्णो संखेज्जगुणहीणो ॥ ५३ ॥ एवं तीसाण पुणो पल्लं मोहस्स होइ उ दिवङ्कं । एवं मोहे पल्लं सेसाणं पलसंखंसो ॥ ५४ ॥ वीसगतीसगमोहाण संतयं जहकमेण संखगुणं । पल्लअसंखेज्जंसो नामागोयाण तो बन्धा ॥ ५५॥ एवं तीसापि हु एक्कपहारेण मोहणीयस्स । तीसग संभागो ठितिबन्धो संतयं च भवे ॥ ५७ ॥ वीस असंखभागे मोहं पच्छाओ घाइ तइयस्स । वीसाण तओ घाइ संखभागम्मि बज्झति ॥५७॥ असंखसमयबद्धाणु-दीरणा होइ तम्मि कालम्मि । देसे घाइरसंतो मणपज्जव अंतरायाणं ॥ ५८ ॥ लाभोहीणं पच्छा भोगा चक्खूसुया तो चक्खू | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302