Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad

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Page 270
________________ ( २६५ ) सम्मुप्पायणविहीणा चउगइया सम्मदिठी पजत्ता । संजोयणा विजोयंति न उण पढमठिति करेंति ॥ ३४ ॥ उवरिगे करणदुगे दलियं गुणसंकमेण तेसिं तु । नासेइ तओ पच्छा अंतमुहुत्ता सभावस्थो ॥ ३५ ॥ दंसणखवगस्सरिहो जिणकालीओ पुमठवासुवरिं । अण्णासकमा करणाइं करि गुणसंकर्म तह य ॥ ३६ ॥ पुत्रकरणसमगं गुणनवलणं करेइ दोण्हं पि । तक्करणाइ जं तं ठितिसंत संखभागोंते ॥ ३७ !! एवं ठितिबंधो विहु पविसइ अणियहिकरणसमयम्मि । अपुव्वा गुणसेटिं ठितिरसकंडाणि बन्धं च ॥ ३८॥ सुवसमनिकायण निहन्तिरहियं च होइ विडितिगं कमसो असणिचउरिंदियाइ तुल्लं च ठिइसंतं ३९ ठितिखंड सहस्साइं एक्केक्के अंतरंमि गच्छति । पलिओवभसंखंसे दंसणसंते तओ जाए ॥ ४० ॥ संखेज्जा संखेज्जा भागा खंडेइ सहससो ते वि । तो मिच्छस्स असंखा संखेजा सम्ममीसा ॥४१॥ तत्तो बहुखंडते खंड उदयावलीरहिअमिच्छं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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