Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
View full book text ________________
( २६३) एवमणियट्टिकरणे ठितिघायाईणि हुंति चउरो वि। संखेज्जसे सेसे पढमठिइ अंतरं च भवे ॥ १७ ॥ अंतमुहुत्तियमेत्ताई दोवि निम्मवइ बन्धगद्धाए । गुणसेढीसंखभागं अंतरकरणेण उकिरइ ॥ १८ ॥ अंतरकरणस्स विही घेत्तुं घेत्तुं ठिईओ मज्झाओ। दलियं पढमठिईए विबुभइ तहा उवरिमाए ॥१९॥ इगदुग श्रावलिसेसाए णत्थि पढमाए दीरणागाला। पढमठिईए उदीरण बीयाउ एइ आगालो ॥ २० ॥ आवलिमेत्तं उदएण वेइउं ठाइ उवसमद्धाए । उपसमियं तत्थ भवे सम्मत्तं मोक्खबीयं जं ॥ २१ ॥ उवरिमठिइअणुभागं तिहा तओ कुणइ चरिममिच्छदए देसघाएण सम्म इयरेणं मिच्छमीसाइं ॥ २२ ॥ सम्मे थोवो मीसे असंखओ तस्स असंखओ सम्मे। पइसमयं इइ खेवो अंतमुहुत्ताउ विज्झाओ ॥२३॥ गुणसंमेण एसो संकमो होइ सम्ममीसेसु । अंतरकरणम्मि ठिओ कुणइ जओ सपसस्थगुणो॥२४॥ गुणसंकमेण समगं तिणि वि थक्कंति आउवजाणं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302