Book Title: Karmagrantha Karmaprakruti Panchasangraha
Author(s): Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
Publisher: Hemchandracharya Granthamala Ahmedabad
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(२५७)
सुहुमस्त चक्खुणो पुण तिइंदिए सव्वपज्जते ॥ ५८॥ निद्राणं पंचहत्रि मज्झिमपरिणामसंकि लिट्ठस्स । पण नोकसायऽसाए नरए जेठि त सम्मत्तो ॥ ५९ ॥ सम्मत्तमी सगाणं से काले गहिहितित्ति मिच्छत्तं । हासरईणं पज्जत्तगस्ल सहस्सारदेवस्स ॥६०॥ पंचिंदी तसवायर पज्जत्तगसाय सुस्सर गईं। dogस्सासस्स य देवो जेठिति सम्मत्तो ॥ ६१ ॥ गइ हुंडुवघायाणिट्ठखगतिदुभगाइ (च)नीयगोयाणं । रईओ जेडटिई मणुओ ते अपजस्स ||६२|| कक्खडगुरुसंघयणथी पुंमसंठाणतिरिगईणं च । पंचिदियो तिरिक्खो अहमवासे हवासाऊ ॥ ६३॥ तिगपलियाऊ सम्मत्तो मणुअगतिउसभउरलसत्ताणं ।
( मणुओ मणुयगइउसभऊर लाएं पाठांतर ) पज्जत्ता चउगईआ नक्कोससगाउयाणं तु ॥ ६४ ॥ हस्सठिईपज्जन्त्ता तन्नामा विगलजाइसुहुमाणं । थावरनिगोळा एगिं - दिआणमिह बायरा नवरिं ॥६५॥ आहारतण पज्जन्त्तगो य चउरंसमउ य लहुयाणं ।
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