Book Title: Kamal Battisi Author(s): Gyanand Swami Publisher: Bramhanand Ashram View full book textPage 8
________________ सम्यक्चारित्र सूत्र २. १. चारित्र शून्य पुरूष का विपुल शास्त्राध्यन भी व्यर्थ ही है, जैसे- अंधे आदमी के सामने लाखों करोड़ों दीपक जलाना व्यर्थ है। चारित्र संपन्न का अल्पतम ज्ञान भी बहुत है। सम्यकदर्शन और सम्यक्ज्ञान के साथ जो मूल और उत्तर गुणों का पालन करता है, वही चारित्र है, अन्य नहीं तथा यही चारित्र मोक्ष का कारण है। असंयत, देश संयत सम्यकदृष्टि को कषायों की प्रवृत्ति तो है परन्तु उसकी श्रद्धा में कोई भी कषाय करने का अभिप्राय नहीं रहता, पर्याय में कषाय होती है पर उसे वह हेय मानता है। द्रव्यलिंगी को तो शुभ कषाय करने का अभिप्राय रहता है और उसे श्रद्धा में भला भी समझता जीवों के प्रति क्रूरता होना जो पाप का कारण है। दोनों के अभाव में शुद्धोपयोग होता है जो कर्मबंध के आधीन नहीं है, जिससे कर्म बंध नहीं होता है। शुभोपयोग और अशुभोपयोग से मुक्त होकर जीव को ज्ञान स्वरूपी तथा पर वस्तुओं से अत्यंत भिन्न अपने आत्म स्वरूप का ध्यान करना चाहिये, यही आत्म कल्याण का मार्ग है। ८. यदि मुक्ति प्राप्त करना है तो आगम ज्ञान सहित सम्यकदर्शन एवं सम्यक्चारित्र (आत्म संयम) आवश्यक है। साधु को पांच समितियों सहित तीन गुप्तियों से युक्त, इन्द्रिय विजयी, कषायों को जीतने वाला तथा सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान एवं अनुशासन पूर्ण (संयत) होना चाहिए। सम्यकदर्शन द्वारा दर्शनमोह को नाशकर तथा सम्यकज्ञान द्वारा तत्वार्थ को जानकर सदाकाल अकम्प सम्यक्चारित्र का अवलंबन करना चाहिए। अज्ञान सहित चारित्र का सेवन सम्यक्चारित्र नाम नहीं पाता अत: सम्यक्ज्ञान के बाद ही सम्यक्चारित्र की आराधना कही गई है। १०. सम्यक्चारित्र, प्रत्यक्ष मोक्ष का द्वार है। ४. जीव, जिस समय शुभ अथवा अशुभ रूप परिणमन करता है उस समय शुभाशुभ रूप हो जाता है और जिस समय शद्ध रूप परिणमन करता है उस समय शुभाशुभ से रहित हो जाता है। शुद्धोपयोग से जीव निर्वाण, अनंत अतीन्द्रिय सुख को प्राप्त होता है। शुभोपयोग से स्वर्ग और अशुभोपयोग से निरंतर नरक, तिर्यंच आदि दुर्गतियों दुष्ट मानव आदि भव को प्राप्त कर संसार में परिभ्रमण करता सिलवानी २९ मार्च १९९९ (महावीर जयंती) अ.नंवत्री (रचना) है। जिसने पदार्थों और उनके श्रुत को भली-भांति जान लिया है, जो संयम और तप सहित है, जिसका राग नष्ट हो चुका है और जो सुख-दुःख में समता परिणाम रखता है ऐसा श्रमण शुद्धोपयोग धारी कहा गया है। आत्मा उपयोग स्वरूप है, दर्शन और ज्ञान उपयोग कहे गये हैं और आत्मा का वह उपयोग शुभ तथा अशुभ होता है । शुभोपयोग का लक्षण - धर्मादि कार्यों में समर्पण भावना तथा जीवों पर दया भाव होना जो पुण्य का कारण है। अशुभोपयोग का लक्षण - इन्द्रियों के विषय कषाय में लीन होना, ज्ञान दान स्वाध्याय हेतु उपलब्ध सत्साहित्य * श्री मालारोहण टीका -२५ रूपया * श्री पंडित पूजा टीका - १५ रूपया * श्री कमलबत्तीसी टीका -२५ रूपया * अध्यात्म अमृत (जयमाल, भजन) - १० रूपया * अध्यात्म किरण - १० रूपया (जैनागम १००८ प्रश्नोत्तर) * अध्यात्म भावना - ५ रूपया * अध्यात्म आराधना, देवगुरू शास्त्र पूजा - ५ रूपया * ज्ञान दीपिका भाग-१,२,३ (प्रत्येक) - ५ रूपयाPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 113