Book Title: Kalikal Sarvagna Hemchandrasuri Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ डिसेम्बर २०१० सर्वज्ञ के रूप में तथा कुमारपाल के समय में जैन शासन के महाप्रभावक पुरुष के रूप में इतिहास में प्रकाशमान हुए ।" दलसुख मालवणिया : गणधरवाद की प्रस्तावना, पृ. ४७-४८ हेमचन्द्र के "काव्यानुशासन' ने उन्हे उच्चकोटि के काव्यशास्त्रकारों की श्रेणी में प्रतिष्ठित किया है । उन्होंने यदि पूर्वाचार्यों से बहुत कुछ लिया, तो परवर्ती विचारकों को चिन्तन के लिएविपुल सामग्री भी प्रदान की । I प्रभुदयाल अग्निहोत्री : संचालक - मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी : प्रस्तावना - आचार्य हेमचन्द्र १२७ कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र, जिन्हें पश्चिमी विद्वान आदरपूर्वक ज्ञान का सागर Ocean of Knowledge कहते हैं, संस्कृत जगत् में विशिष्ट स्थान रखते हैं । संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश साहित्य के मूर्धन्य प्रणेता आचार्य हेमचन्द्र का व्यक्तित्व जितना गौरवपूर्ण है उतना ही प्रेरक भी है । कलिकालसर्वज्ञ उपाधि से उनके विशाल एवं व्यापक व्यक्तित्व के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है । न केवल अध्यात्म एवं धर्म के क्षेत्र में अपितु साहित्य एवं भाषा - विज्ञान के क्षेत्र में भी उनकी प्रतिभा का प्रकाश समान रूप से विस्तीर्ण हुआ । इनमें एक साथ ही वैयाकरण, आलङ्कारिक, धर्मोपदेशक और महान् युगकवि का अन्यतम समन्वय हुआ है । आचार्य हेमचन्द्र का व्यक्तित्व सार्वकालिक, सार्वदेशिक एवं विश्वजनीन रहा है, किन्तु दुर्भाग्यवश अभी तक उनके व्यक्तित्व को सम्प्रदाय - विशेष तक ही सीमित रखा गया । सम्प्रदायरूपी मेघों से आच्छन्न होने के कारण इन आचार्य सूर्य का आलोक सम्प्रदायेतर जनसाधारण तक पहुँच न सका । स्वयं जैन सम्प्रदाय में भी साधारण बौद्धिक स्तर के लोग आचार्य हेमचन्द्र के विषय में अनभिज्ञ हैं । किन्तु आचार्य हेमचन्द्र का कार्य तो सम्प्रदायातीत और सर्वजनहिताय रहा है और, इस दृष्टि से वे अन्य सामान्य जन, आचार्यों एवं कवियों से कहीं बहुत अधिक सम्मान एवं श्रद्धा के अधिकारी हैं । संस्कृत साहित्य और विक्रमादित्य के इतिहास में जो स्थान कालिदास का और श्री हर्ष के दरबार में जो स्थान बाणभट्ट का है, प्रायः वही स्थान १२वीं शताब्दी में चौलुक्य वंशोद्भव सुप्रसिद्ध गुर्जर नरेन्द्र शिरोमणि सिद्धराजPage Navigation
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