Book Title: Kalikal Sarvagna Hemchandrasuri
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 9
________________ अनुसन्धान- ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ थे । उपदेशों से प्रभावित होकर चांगदेव ने आचार्य से दीक्षा ग्रहण करने की इच्छा प्रकट की । उस समय नेमिनाग ने गुरु से चांगदेव का परिचय भी करवाया । चांगदेव की बात सुनकर आचार्य ने उसकी माता से दीक्षा की अनुमति चाही । किन्तु, उसने कहा कि इसके पिता अभी बाहर गए हैं, उनके आने पर अनुमति प्रदान की जाएगी । नेमिनाग के समझाने-बुझाने पर उसने अपने पुत्र को आचार्यश्री को सौंप दिया और आचार्य ने उसे खम्भात में मन्त्री उदयन के पास रखा । आचार्य ने जैन संघकी अनुमति से समय पर चांगदेव को दीक्षा दी और उसका नाम सोमचन्द्र रखा । सोमचन्द्र का शरीर सुवर्ण के समान तेजस्वी एवं चन्द्रमा के समान सुन्दर था, इसीलिए वे हेमचन्द्र कहलाए । १३२ प्रबन्ध चिन्तामणि के अनुसार बाल्यावस्था का एक प्रसङ्ग और मिलता है – “चांगदेव अपने समवयस्क बालकों से खेलते हुए उपाश्रय पहुँचे और बाल्य स्वभाव से देवचन्द्राचार्य के पाट पर तत्काल जा बैठे । आचार्य ने देखा और कहा कि यदि इसने दीक्षा ग्रहण कर ली तो युगप्रधान के समान होगा । आचार्य ने उसकी माता से उसको मांगा और माता ने 'पिता बहार गए हैं' कहकर टाल दिया । भाई नागदेव के कहने से बहिन पाहिणी ने आचार्य को सुपुर्द कर दिया और वह खम्भात में उदयन मन्त्री के पास चला गया । चाचिग घर आया और चांगदेव को न देखकर पूछा कि चांगदेव कहां है ? माता चुप रही, फिर उसे ज्ञात हुआ कि चांगदेव खम्भात में मन्त्री उदयन के पास है । चाचिग अपने पुत्रको लेने के लिए खम्भात, उदयन के घर पहुँचा और स्नेहविह्वल होकर पुत्र की याचना की । मन्त्री उदयन ने तीन दुशालें और तीन लाख रूपये प्रदान कर उसकी दीक्षा की अनुमति चाही। चाचिग ने पुत्रप्रेम में पागल होकर यह कहा कि यह द्रव्य शिवनिर्माल्य है, आप मुझे मेरा पुत्र दीजिए । अन्त में मन्त्री उदयन के हर तरह से बहुत समझाने-बुझाने पर दीक्षा की अनुमति प्रदान की । समय पर उदयन मन्त्री के सहयोग से चतुर्विध संघ के समक्ष देवचन्द्राचार्य ने उसको दीक्षा दी और दीक्षा नाम रखा सोमचन्द्र । प्रभावक चरित्र के अनुसार इनका दीक्षा संस्कार विक्रम संवत् ११५० माघ शुक्ला

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