Book Title: Kalikal Sarvagna Hemchandrasuri
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 25
________________ अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ मम्मट का काव्यप्रकाश क्लिष्ट है, साधारण पाठकों के लिए सुगम नहीं और संस्कृत के काव्य के अतिरिक्त अन्य साहित्य विधाओं का अध्ययन करने के लिए दूसरे ग्रन्थ भी देखने पड़ते हैं । हेमचन्द्र का काव्यानुशासन इस अर्थ में परिपूर्ण है । १४८ छन्दोनुशासन इसका अपरनाम छन्द चूड़ामणि है और स्वोपज्ञ टीका है । यह आठ अध्यायों एवं ७६३ सूत्रों में विभक्त है । अपने समय तक आवेशकृत एवं पूर्वाचार्यों द्वारा प्ररूपित समस्त संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश छन्दों का समावेश करने का प्रयत्न किया है । छन्दों के लक्षण तो इसमें संस्कृत में लिखे हैं किन्तु उनके उदाहरण, उनके प्रयोगानुसार संस्कृत, प्राकृत या अपभ्रंश से दिए गए हैं । ऐसे अनेक प्राकृत छन्दों के नाम लक्षण उदाहरण भी दिए हैं जो स्वयम्भू छन्द में नहीं है । छन्दोनुशासन की रचना काव्यानुशासन के बाद हुई है । छन्दोनुशासन से भारत के विभिन्न राज्यों में प्रचलित छन्दों पर प्रकाश पड़ सकता है । ग्रन्थ में प्रस्तुत उदाहरणों के अध्ययन से हेमचन्द्र का गीति काव्य में सिद्धहस्त होना भी मालूम पड़ता है । संस्कृत साहित्य की दृष्टि से छन्दोनुशासन के रूप में हेमचन्द्र की देन अधिक दृष्टिगत नहीं होती किन्तु प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषा की दृष्टि से उनकी देन उल्लेखनीय है । प्रमाण - मीमांसा प्रमाण-मीमांसा में यद्यपि उनकी मूल स्थापनाऐं विशिष्ट नहीं है तथापि जैन प्रमाण शास्त्र को सुदृढ़ करने में, अकाट्य तर्कों पर प्रतिष्ठित करने में प्रमाणमीमांसा विशिष्ट स्थान रखता है । यह ग्रन्थ सूत्र शैली का ग्रन्थ है । उपलब्ध ग्रन्थ में २ अध्याय और ३ आह्निक मात्र हैं। अपूर्ण है । हो सकता है कि वृद्धावस्था के कारण इसे पूर्ण न कर पाए हों, अथवा शेष भाग नष्ट हो गया हो। इस ग्रन्थ में हेमचन्द्र की भाषा वाचस्पति मिश्र की तरह नपीतुली, शब्दाडम्बरों से रहित, सहज और सरल है । यह न अति संक्षिप्त है और न अधिक विस्तार वाला । प्रमाण - मीमांसा का उद्देश्य केवल प्रमाणों की चर्चा करना नहीं है अपितु प्रमाणनय और सोपाय बन्ध मोक्ष इत्यादि परमपुरुषार्थोपयोगी विषयों की चर्चा करना है । इस ग्रन्थ की

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