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डिसेम्बर २०१०
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इन स्तोत्रों का जितना महत्त्व है उनसे कहीं अधिक काव्य की दृष्टि से महत्त्व है । अन्य योग व्यवच्छेद द्वात्रिंशिका में अन्य दर्शनों का खण्डन किया गया है । डॉ. आनन्दशंकर ध्रुव ने इन पर अपना अभिमत प्रकट किया है । उनके मत से 'चिन्तन और भक्ति का इतना सुन्दर समन्वय इस काव्य में हुआ है। यह दर्शन तथा काव्यकला दोनों ही दृष्टि से उत्कृष्ट कहा जा सकता है।' जैन दर्शन के व्यापकत्व के विषय में बतलातेहुए हेमचन्द्र कहते हैं कि जिस प्रकार दूसरे दर्शनों के सिद्धान्त एक दूसरे को पक्ष व प्रतिपक्ष बनाने के कारण मत्सर से भरे हुए हैं उस प्रकार अर्हत् सिद्धान्त नहीं है क्योंकि यह सारे नयों को बिना भेदभाव के ग्रहण कर लेता है ।
इस स्तोत्र पर श्री मल्लिषेणसूरि की टीका ‘स्याद्वादमञ्जरी' है ।
वीतराग स्तोत्र - यह भक्ति स्तोत्र है । इसमें २० स्तव हैं । ८८ पद्यों का एक स्तव है इस प्रकार कुल पद्य संख्या १८६ है । भक्तहृदय हेमचन्द्र ने वीतराग स्तोत्र भक्ति के साथ समन्वयात्मकता एवं व्यापक दृष्टिकोण प्रदर्शित किया है।
अयोग व्यवच्छेद द्वात्रिंशिका - इसमें भी ३२ पद्य हैं । इसमें प्रमुखता से स्वमत का मण्डन अर्थात् जैन मत का प्रतिष्ठापन किया गया है। भगवान महावीर की स्तुति करते हुए सरल एवं सरस शब्दों में जैन धर्म का स्वरूप संक्षेप तथा प्रामाणिक भाषा में वर्णित किया गया है ।
महादेव स्तोत्र - इस स्तोत्र में महादेव को आधार बनाकर वीतराग देव की स्तुति की गई है और यह सर्वधर्मसमन्वय की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कृति है।
योगशास्त्र - चालुक्य नरेश कुमारपाल के विशेष अनुरोध से आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र की रचना की थी। इसमें १२ प्रकाश और १०१८ श्लोक हैं । इस पर स्वोपज्ञ विवरण प्राप्त है। जिस प्रकार दिगम्बर परम्परा में योग विषयक शुभचन्द्र कृत ज्ञानार्णव ग्रन्थ अप्रतिम है उसी प्रकार श्वेताम्बर परम्परा में हेमचन्द्र का योगशास्त्र भी एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । यह सरल, सुबोध, संस्कृत में रचा गया है। प्रायः इसमें अनुष्टुप् छन्द का ही प्रयोग किया गया है।