Book Title: Kalikal Sarvagna Hemchandrasuri Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ १२४ अनुसन्धान- ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ कलिकाल - सर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्रसूरि (संकलित ) म. विनयसागर I भारत और जैन शासन के ज्योतिर्धर आचार्यों में और कलिकाल में भी सर्वज्ञ के तुल्य श्री हेमचन्द्रसूरि के नाम से कौन अनभिज्ञ है ? ये आप्तकोटि के मौलिक साहित्यकारोंमें हुए हैं । विविध भाषाओं के जानकार, सम्पूर्ण साहित्य के मर्मज्ञ, विविध विषयों के रचनाकार, १२वीं शताब्दी उद्भट विद्वान और गुजरात के संस्कृति - संस्कार - भाषा की अस्मिता / गौरव को स्थायित्वअमरता प्रदान करनेवाले थे । उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर लिखने के पूर्व उनके सम्बन्ध में विद्वानों ने जो अभिमत प्रकट किए हैं, वह प्रस्तुत कर रहा हूँ : सुमस्त्रिसन्ध्यं प्रभुहेमसूरेरनन्यतुल्यामुपदेशशक्तिं । अतीन्द्रियज्ञानविवर्जितोऽपि यः क्षोणिभर्तुर्व्यधित प्रबोधम् । सत्त्वानुकम्पा न महीभुजां स्यादित्येष क्लृप्तो वितथः प्रवादः । जिनेन्द्रधर्मं प्रतिपद्य येन श्लाघ्यः स केषां न कुमारपाल: ? सोमप्रभाचार्य-कुमारपालप्रतिबोध इत्थं श्रीजिनशासनाभ्रतरणेः श्रीहेमचन्द्रप्रभोरज्ञानान्धतम:प्रवाहहरणं मात्रादृशां मादृशाम् ॥ विद्यापङ्कजिनीविकासविदितं राज्ञोऽतिवृद्ध्यै स्फुरवृत्तं विश्वविबोधनाय भवताद् दुःकर्मभेदाय च ॥ प्रभावकचरित - हेमसूरिप्रबन्ध - 44 'आज गुजरात की प्रजा दुर्व्यसनों से बची हुई है, उसमें संस्कारिता, समन्वय धर्म, विद्यारुचि, सहिष्णुता, उदारमतदर्शिता आदि गुण दृष्टिगत होते हैं, साथ ही भारतवर्ष के इतर प्रदेशों की अपेक्षा गुजरात की प्रजा में धार्मिक झनून आदि दोष अत्यल्प प्रमाण में दृष्टिगत होते हैं तथा समस्त गुजरात की प्रजा को वाणी/बोली प्राप्त हुई है, वह सब भगवान श्री हेमचन्द्र और उनकेPage Navigation
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