________________
डिसेम्बर २०१०
१३५
जयसिंह से कब हुआ ? प्रभावक चरित्र और प्रबन्ध चिन्तामणि के अनुसार संवत् ११८१ में दिगम्बर कुमुदचन्द्र के साथ वादी देवसूरि का जो शास्त्रार्थ हुआ था उस समय हेमचन्द्र भी देवसूरि के साथ थे । प्रबन्ध चिन्तामणि के अंग्रेजी अनुवादक प्रो. टोनी के अनुसार सर्वप्रथम अपनी बहुमुखी विद्वत्ता से ही राजा को प्रभावित किया होगा और बाद में धार्मिक प्रभाव आया होगा। प्रभावक चरित्र (२२/६७) के अनुसार सिद्धराज जयसिंह और आचार्य हेमचन्द्र का मिलन अणहिलपुर के एक सकड़े मार्ग पर हुआ था । जहाँ से हाथी को निकलने में रुकावट पड़ी थी और हेमचन्द्र ने 'सिद्ध को निश्शङ्क होकर अपने गजराज को ले जाने के लिये कहा और श्लेष से स्तुति की ।' हेमचन्द्र की प्रशान्त मुद्रा और उद्भट पाण्डित्य से प्रभावित होकर अभिवादन के पश्चात् उन्होंने कहा होगा कि 'प्रभो ! आप राजप्रासाद में पधारकर दर्शन देने की कृपा करें ।' इसके पश्चात् ही हेमचन्द्र ने यथा समय राज्यसभा में प्रवेश किया और अपनी अद्भुत वैदुष्य और चारित्रबल से राजा को प्रसन्न किया।
कुमुदचन्द्र के साथ शास्त्रार्थ का समय ११८१ के अनुसार हेमचन्द्र का सम्पर्क सिद्धराज जयसिंह से उसी समय हुआ था । किन्तु, प्रबन्ध चिन्तामणि, प्रभावक चरित्र के अनुसार इनका सम्पर्क इस शास्त्रार्थ से पूर्व ही हो चुका था । प्रो. पारीख के मतानुसार संवत् ११६९ के लगभग यह सम्पर्क हुआ होगा ।
अरबी भूगोलज्ञ अरी इदसी ने लिखा है कि जयसिंह बुद्ध प्रतिमा की पूजा करता था । यह उल्लेख डॉ० बुल्हर ने भी किया है । हेमचन्द्र की अमृतमय वाणी में उपदेश न मिलने पर जयसिंह के चित्त में एक क्षण भी संतोष नहीं होता था । आचार्य हेमचन्द्र तथा सिद्धराज जयसिंह लगभग समवयस्क थे । सिद्धराज का जन्म केवल तीन वर्ष पूर्व ही हुआ था । अतः इन दोनों का परस्पर सम्बन्ध गुरु शिष्य के समान कभी नहीं रहा । फिर भी सिद्धराज सदैव हेमचन्द्र के प्रभाव में रहे ।
सिद्धराज जयसिंह और आचार्य हेमचन्द्र के सम्बन्धों को देखकर सोमप्रभसूरि कुमारपाल प्रबन्ध में लिखते हैं 'बुधजनों के चूड़ामणि आचार्य हेमचन्द्र भुवनप्रसिद्ध सिद्धराज को सर्व स्थानों में प्रष्टव्य हुए ।' शैव होने पर