Book Title: Kalikal Sarvagna Hemchandrasuri
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 19
________________ १४२ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ में इसको चैत्यवन्दन के रूप में बोलकर हेमचन्द्राचार्य के प्रति अपनी भावाञ्जलि प्रस्तुत करता है । यह उचित भी है । साहित्य सर्जना युगानुसार तर्क, लक्षण और साहित्य इन तीन महाविद्याओं का अधिकृत अध्ययन कर राज्यसभा का सदस्य बन जाना उत्तम कोटि का माना जा सकता है। किसी एक-दो विधा पर अपनी प्रतिभा के बल पर नूतन साहित्य का निर्माण कर महाकवि या महालेखक बनना सम्भवित माना जा सकता है किन्तु, अनेक विधाओं पर अधिकारपूर्ण मौलिक साहित्य का निर्माण करना सर्वोत्कृष्ट या सिद्धसारस्वत ही कर सकता है । इस तीसरी कोटि में आचार्य हेमचन्द्र को रखना ही न्यायसङ्गत होगा । इन्होंने जो कुछ भी साहित्य सर्जन किया वह मौलिक ही रहा, कोई टीका या टिप्पणी नहीं । हाँ, यह सत्य है कि पूर्व कवियों, लेखकों का विधिवत् अध्ययन कर उनके मन्तव्यों को आपने स्थान-स्थान पर उद्धृत अवश्य किया है या उनको आत्मसात् कर मौलिक सृजन ही किया है । यह भी एक विधा पर नहीं - शब्दानुशासन (पंचांगी सहित), कोष, अनेकार्थी कोष, देशी नाममाला, महाकाव्य, द्विसन्धान काव्य, अलङ्कार शास्त्र, छन्दःशास्त्र, न्याय शास्त्र, योग शास्त्र और स्तोत्र आदि विविध विषयों पर रचनाएँ की हैं जो कि यह सिद्धसारस्वत ही कर सकता है। दूसरी बात यह कि साहित्य सर्जन के अतिरिक्त दो-दो महाराजाओं पर अपने वैदुष्य का प्रभाव डालना और एक को तो अपना वशम्वद ही बना लेना, उन जैसे प्रभावक आचार्यों का ही कार्य है। उनके द्वारा जो निर्मित साहित्य जो प्राप्त हो रहा है उसकी सूची आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी ने तैयार की थी वह निम्न है :ग्रन्थ नाम श्लोक संख्या १. सिद्धहेमशब्दानुशासन २. सिद्धहेम लघुवृत्ति ९००० ३. सिद्धहेम बृहवृत्ति १८००० सिद्धहेम बृहन्न्यास ८४००० ५. सिद्धहेम प्राकृतवृत्ति २२००

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