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अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
इन्हें निरर्थक मानकर शब्दों का सङ्ग्रह कहकर डॉ० बुल्हर ने हेमचन्द्र की आलोचना की है किन्तु, डॉ० बुल्हर आलोचना करते समय हेमचन्द्र के मन्तव्य को समझ नहीं पाये। प्रो. मुरलीधर बनर्जीने स्वसम्पादित देशीनाममाला की प्रस्तावना में इस प्रश्न पर युक्ति संग्रत विचार किया है और आलोचना का समुचित उत्तर भी किया है। प्रो. पिशल ने इन शब्दों का सङ्ग्रह व्यर्थ ही माना है किन्तु प्रो. बनर्जी ने इसका भी उत्तर दिया है । देशी शब्दों का यह शब्दकोश बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी है इसमें तत्सम, तत्भव और देशी शब्दों का प्रयोग किया गया है । इस कोष में ४०५८ शब्द संकलित हैं | जिसमें तत्सम शब्द १८०, गर्भित तद्भव शब्द १८५०, संशय युक्त तद्भव शब्द ५२८ और अव्युत्पादित प्राकृत शब्द १५०० हैं । इस कोष में आठ अध्याय हैं और कुल ७८३ गाथाएँ हैं ।
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निघण्टु शेष यह वनस्पति शब्दों का कोष है । इसमें छः काण्ड हैं । ३७९ श्लोक हैं । वैद्यक शास्त्र की दृष्टि से यह अत्यन्त उपयोगी है। काव्यानुशासन - इसमें तीन प्रमुख विभाग हैं । १. सूत्र (गद्य), २. व्याख्या, ३. वृत्ति । काव्यानुशासन में कुल सूत्र २०८ हैं । सूत्रों की वृत्ति करने वाली व्याख्या ‘अलङ्कार चूड़ामणि' कहलाती है और इसी व्याख्या को सुस्पष्ट करने के लिए उदाहरणों के साथ 'विवेक' नाम वृत्ति लिखी गई है। काव्यानुशासन ८ अध्यायों में विभक्त है । अलङ्कारशास्त्र से सम्बन्ध रखने वाले सारे विषयों का प्रतिपादन बहुत ही सुन्दर रूप से किया गया है । अलङ्कार चूड़ामणि में कुल ८०७ उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं और 'विवेक ८२५ उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं । सम्पूर्ण काव्यानुशासन में १६३२ उदाहरण प्रस्तुत हैं । अलङ्कार चूड़ामणि एवं विवेक में ५० कवियों तथा ५१ ग्रन्थों के नामों का उल्लेख किया गया है ।
प्रथम अध्याय में काव्य परिभाषा, काव्यहेतु, काव्यप्रयोजन आदि का वर्णन है । द्वितीय अध्याय में रस, स्थायी भाव, व्यभिचारी भाव तथा सात्त्विक भावों का वर्णन किया गया है । तृतीय अध्याय में शब्द, वाक्य, रस तथा दोषों पर प्रकाश डाला गया है । चतुर्थ अध्याय काव्यगुण अर्थात् ओज, माधुर्य एवं प्रसाद पर प्रकाश डाला गया है । पञ्चम अध्याय में छः शब्दालङ्कारों