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डिसेम्बर २०१०
के सम्बन्ध में इतना विस्तृत विवेचन उपस्थित किया है ।
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कोष-अभिधानचिन्तामणि नाममाला - १२वीं शताब्दी में जितने कोष ग्रन्थ लिखे गए उनमें से हेमचन्द्र के कोष सर्वोत्कृष्ट हैं । श्री ए. बी. कीथ अपने संस्कृत साहित्य के इतिहास में उक्त कथन का समर्थन करते हैं । इसमें छः काण्ड हैं जिनकी पद्य संख्या कुल १५४२ हैं । इस पर 'तत्त्वबोधविधायिनी' नामक स्वोपज्ञ टीका है । इस टीका ग्रन्थ में शब्द प्रामाण्य वासुकि एवं व्याडि से लिया गया है और व्युत्पत्ति धनपाल और प्रपञ्च से ली गई है। विकास, विस्तार, वाचस्पति आदि ग्रन्थों से लिया गया है । कोषों में यह कोष अनेक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । इतिहास की दृष्टि से इस कोष का बड़ा महत्त्व है । टीका में पूर्ववर्ती ५६ ग्रन्थकारों और ३१ ग्रन्थों का उल्लेख किया है । सांस्कृतिक दृष्टि से हेमचन्द्र के कोषों की सामग्री महत्त्वपूर्ण है । हेमचन्द्र का स्थान न केवल संस्कृत कोष -ग्रन्थकारों में अपितु सम्पूर्ण कोष-साहित्यकारों में अक्षुण्ण है । भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी यह कोष अत्यन्त उत्कृष्ट है। जो कि अभिधान चिन्तामणि में शब्द नहीं
शेषसङ्ग्रह नाममाला
आए थे उसकी पूर्ति स्वरूप ही है ।
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अनेकार्थ सङ्ग्रह जिन शब्दों के एक से अनेक अर्थ होते हैं उन शब्दों का इसमें संकलन किया गया है । इसमें ७ काण्ड हैं और १९३९ श्लोक हैं । अनेकार्थ शब्दों के इस सङ्ग्रह में प्रारम्भ एकाक्षर शब्दों से और अन्त षडक्षर शब्दों से होता है । शब्दों का क्रम आदिम अकारादि वर्णों तथा अन्तिम ककारादि व्यञ्जनों के अनुसार चलता है । इस कोष पर श्री हेमचन्द्रसूरि के शिष्य महेन्द्रसूरि टीका की है ।
देशीनाममाला - जिस प्रकार शब्दानुशासन में प्राकृत एवं अपभ्रंश का व्याकरण लिखकर शब्दानुशासन को पूर्णता प्रदान की है उसी प्रकार कोष साहित्य में भी देशी नाममाला लिखकर कोष साहित्य को पूर्णता प्रदान की है । इसमें ३९७८ शब्दों का संकलन है । देशी शब्दों का सङ्ग्रह कठिन कार्य है, सङ्ग्रह करने पर भी उनका ग्रहण करना और भी कठिन कार्य है । इसीलिए हेमचन्द्र ने यह कार्य अपने हाथों में लिया । देशी नाममाला में प्रयुक्त शब्दों की व्युत्पत्ति संस्कृत शब्दों से नहीं हो सकती । इसीलिए