Book Title: Kalikal Sarvagna Hemchandrasuri
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 27
________________ १५० अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ का महाकाव्य है । इसे पौराणिक व ऐतिहासिक महाकाव्य भी कह सकते हैं । जैन परम्परा में जो ६३ शलाका महापुरुष माने गए हैं - चौवीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव, नौ वासुदेव, नौ प्रतिवासुदेव । दस पर्वों में इसका विभाजन किया गया है । प्रत्येक पर्व में अनेकों सर्ग हैं। प्रथम पर्व में भगवान ऋषभदेव का, सप्तम पर्व जैन रामायण, आठ-नौ-दस पर्व ऐतिहासिक महापुरुष नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर के है । इसमें त्रैलोक्य का वर्णन पाया जाता है । इसमें परलोक, ईश्वर, आत्मा, कर्म, धर्म, सृष्टि आदि विषयों का विशद विवेचन किया गया है । इसमें दार्शनिक मान्यताओं का भी विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है । इतिहास, कथा एवं पौराणिक तथ्यों का यथेष्ट समावेश किया गया है । सृष्टि, विनाश, पुनर्निर्माण, देवताओं की वंशावली, मनुष्यों के युगों, राजाओं की वंशावलि का वर्णन आदि पुराणों के सभी लक्षण पूर्णरूपेण इस महद् ग्रन्थ में पाये जाते हैं । यह सारा काव्य प्रौढ़ एवं उदात्त शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है । प्रत्येक वर्णन सजीव एवं सालङ्कार है । डॉ. हरमन जेकोबी ने त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित को रामायण, महाभारत की शैली में रचे गये एक जैन महाकाव्य के रूप में स्वीकार किया है । यह ग्रन्थ पुराण और काव्य- कला दोनों ही दृष्टियों से उत्तम है । इस विशाल ग्रन्थ का कथा-शिल्प महाभारत की तरह है । आचार्य हेमचन्द्र ने अपने इस ग्रन्थ को महाकाव्य कहा है । उसकी संवाद - शैली, उसके लोक- तत्त्वों और उसकी अवान्तर कथाओं का समावेश इस ग्रन्थ को पौराणिक शैली के महाकाव्यों की कोटि में ले जाता है । परिशिष्ट पर्व - इसे 'स्थविरावलिचरित' भी कहा गया है । इसमें १३ सर्ग हैं । मुक्तिगामी जम्बूस्वामी, प्रभव, शय्यम्भव, यशोभद्र, भद्रबाहु, सम्भूतिविजय, स्थूलिभद्र आर्यमहागिरि, आर्य सुहस्ति, वज्रस्वामी, आर्यरक्षित, आदि श्रुतकेवली चतुर्दश पूर्वधर, दस पूर्वधर, आचार्यों का प्राप्त पूर्ण परिचय दिया गया है । आचार्य हेमचन्द्र की दो द्वात्रिंशिकाएँ प्राप्त होती है । पहली है अन्ययोग व्यवच्छेद द्वात्रिंशिका । इसमें ३२ श्लोक हैं । भक्ति की दृष्टि से

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