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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
भी सिद्धराज जयसिंह जिनेन्द्र धर्म के प्रति अनुरक्त हुआ । हेमचन्द्र के प्रभाव में आकर ही जयसिंह ने रम्य राजविहार बनवाया । हेमचन्द्र रचित संस्कृत व्याश्रय महाराज के अनुसार सिद्धपुर में महावीर स्वामी का मन्दिर बनवाया। सिद्धपुर में ही चार जिनप्रतिमाओं से समृद्ध सिद्धविहार भी बनवाया । हेम-गोपालक
कहा गया है कि आचार्य हेमचन्द्र जिस समय सिद्धराज जयसिंह की राजसभा में पहुंचे, उसी समय ईर्ष्यावश किसी मसखरे विद्वान् ने व्यङ्ग्य कसते हुए कहा - "आगतो हेमगोपालो दण्डकम्बलधारकः" अर्थात् दण्डकम्बल धारक हेमगोवालिया आ गया है (जैन साधु बांए कन्धे पर कम्बल
और दांए हाथ में दण्ड धारण करते हैं) यह सुनकर हेमचन्द्र ने तत्काल ही सहज भाव से उस विद्वान् का मुख बन्द करने के लिए करारी चोट करते हुए उत्तर दिया- "षडदर्शनपशुग्रामांश्चारयन् जैनवाटके" अर्थात् षड्दर्शनरूप पशुगणको जैन वाड़े में चराता हुआ दण्ड कम्बल धारक हेमचन्द्र आया है। अर्थात् आक्षेपकारक विद्वानों का सदा के लिए मुंह बन्द हो गया । सिद्धहेम शब्दानुशासन की रचना
___ मालव देश और उसका अधिपति महाराजा भोज, सिद्धराज जयसिंह की आंखों में सर्वदा खटकता रहता था और उसके लिए रात-दिन प्रयत्न रहता था कि मेरी मालव पर विजय हो । विक्रम संवत् ११९१ में सिद्धराज जयसिंह ने मालव पर विजय प्राप्त की । मालव को लूटकर वहाँ के ऐश्वर्य
और साहित्यिक समृद्धि को लेकर पाटण आया और उस समृद्धि को देखते हुए जब 'भोज व्याकरण' देखा तो वह मालव के प्रति नत-मस्तक होकर रह गया । साहित्यिक दृष्टि से मालव इतना समृद्ध था, आज गुजरात भी नहीं है । आज गुजरात के पास साहित्यिक दृष्टि से अपना कहने को कुछ नहीं है । राज्यविस्तार, आर्थिक और सामाजिक के दृष्टि से गुजरात भले कितना ही बड़ा हो किन्तु, मालव की साहित्य समृद्धि के सामने गुजरात की साहित्य
१. बूत यानी प्रतिमा । बुद्ध प्रतिमा ही ज्यादातर देखी होने के कारण एरेबिक लोग इस प्रतिमा
को बूत-बुध करके पहचानते थे । वास्तव में यह प्रतिमा शिवकी या जिनकी होनी चाहिए।